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वर्तमान शताब्दी के महापुरुप
प्रो. एन. वो० वैद्य एम० ए०
फर्ग्युमन कालेज, पूना सदोष विदधाति हन्ति कुमति मियादृशं बाधते, धत्तं धर्मति तनोति परमे सवेगनिवेदने । राणादीन विनिहन्ति नीतिममला पुष्णाति हन्त्यलयं,
यदा किन करोति सद्गुरुमुखारभ्युद्गता भारती। महान पोर सद्गुरु के मुख से निकले हुए वचन सदज्ञान प्रदान करते हैं, दुर्मति का हरण करते हैं, मिथ्या विश्वासों का नाश करते हैं, धार्मिक मनोवृत्ति उत्पन्न करते हैं, मोक्ष को आकाक्षा और पार्थिव जगत के प्रति विरक्ति पैदा करते हैं, राग-देव प्रादि विकारों का नाश करते हैं, सच्ची राह पर चलने का साहस प्रदान करते हैं और गलत एवं भ्रामक मार्ग पर नहीं जाने देते । सक्षेप में, सद्गुरु क्या नहीं कर सकता ?
दूसरे शादों में, सद्गुरु इस जीवन में और दूसरे जीवन में जो भी वास्तव में कल्याणकारी है, उस सबका उद्गम मोर मूल स्रोत हैं।' शालाकापुरुप
इन पक्तियों का असली रहस्प मैंने उस समय जाना, जब मैंने चार वर्ष पूर्व राजगृह में प्राचार्यश्री तुलसी का प्रवचन सुना । कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं, जो प्रथम दर्शन में ही मानस पर प्रतिक्रमणीय छार डालते हैं। पूज्य प्राचार्यश्री सचमुच में ऐसे ही महापुरुष हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापय सम्प्रदाय के वर्तमान प्राचार्य को उनके चम्बकीय धारण भोर प्राररावान व्यक्तित्व के कारण भासानी से युगप्रधान, वर्तमान सताब्दी का महापुरुष अथवा शलाकापुरुष
१. उत्तराध्ययन पर रेवेन्द्र को टीका