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पाचार्यश्री र
(उच्चकोटि का पुरुष अथवा प्रति मानव) कहा जा सकता है। मेग अत्यन्त सद्भाग्य था कि मुझे उनके सम्पर्क में प्राने का अवसर मिला मौन उस सम्पर्क की मधुर और उज्ज्वल स्मृतियों को हमेशा याद रखेंगा । सता सद्भिः संग कयमपि हि पुण्येन भवति अर्थात् सत्संग किसी पुष्प से प्राप्त होता है।
उत्तराध्ययन सूत्र मे लिखा है कि चार बातो का स्यायो महत्त्व है। लोक इस प्रकार है:
चत्तारि परमगाणि दुल्लहागाह जंतुनो।
माणुसतं मुई सद्धा सजमम्मि य वौरियं ॥३.१॥ अर्थात विसी भी प्राणी के लिए चार स्थायी महत्त्व की बातें प्रावकर कठिन है। मनुष्य जन्म, धर्म का ज्ञान, उसके प्रति घना और पात्म-सम्म । सामध्य। उसी प्रकरण में भागे कहा गया है :
माशुस्स विगह सा मुई पामरस दुल्लहा। ३.६ ॥ अर्थात् मनुष्य जन्म मिल जाने पर भी धर्म का श्रवण कठिन है। दुमपतय नामक दशम अध्ययन में भी हमी भावना को दोहराया या
प्रहोग पचिरियत पिसे सहे
उत्तम घाम मुई। दुल्लहा।१०-१८॥ यदपि मनुष्य पांचों इन्द्रियों से सम्पन्न हो साता है, किनु असम पम शिक्षा मिलना लंभ होता है।
इमलिए किसी व्यक्ति के लिए यह परम सौभाग्य का हो विषय हो हा है उगे महानगर पथवा मरे पप-
पकमा सम्पर्क प्राप्त होका यो विधक मने मिसान्तों का निशान करना हो। सरसे मार पूर्ण वामहैरिको प्राने उदेशनमार सप प्रापारण भी करता भापारधी गुरमीक चम्बकीय पारगंज राम्चो और उनको चोर विधापो प्रचार .art हो मन पर पता है। उनका मान महारका समसामायिकमा युवानही है। इस . ने और उतरता, सापार विधानता काan tra
है। सदगारों मनि म्यान मारमा नमुना ६.