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जानवता के पोपक, प्रचारक उन्नायक चार सायन जुटाने वाले स्वयं सत्ता के शिकार हो जाते हैं. इसलिए उनशे नास-पाम दल उग पाते हैं। पंमा दे है पौर देकर मन-ही-मन सदस गुना माने को प्राशा रसते हैं। इसीलिए जमे ही सिदि-प्राप्त व्यक्ति का मार्गशुन मगन नहीं रहना, वे सताके दलदल में पारण्ठम जाते हैं। स्वयं माधापंधी ने रहा है-"धन पौर राज्य की सता में विलीन धर्मको विवहा बार तो कोई पतिरेक न होगा।" इसमें अधिक स्पष्ट और कटोर पदों का प्रयोग हम नहीं कर सकते। प्रियात्मक शक्ति और संवेदनशीलता
पर पायद यह तो विपातर हो गया। यह तो मरो अपनी मात्र है। राने घर वन-भादोलन के जन्मदाता को मानवता में मासका क्यों हो! जो यति नितिमूलकन मं को जन-कल्याण के क्षेत्र में में पाया, मानता में उमरी माय (RENR हो बाभन है। इसीलिए माय भी है। उनकी क्रियापक परिमोर सदनशीलता नियही सो नि RRAAT पितानानानामों पो से वायलिहरे-भरे मुरम्म प्रदेश में परिपतित कर देपो । कारमान नही लिखा है, 'सो महापुरी महारा का पता गयाना हो तो यह देखना चाहिए किन भरने से छोटे साप मा almaar है।" पापाश्री स्वभाव मे ही सबको समान मानते हैं। परन से हो धमे में सोच रही है पौर रे सार उन्हें पानी मातृधो को भोर से सात में मिमे है । महाने पोहो जोशमी ममभासमयमों में होने कहा है, "मेरमों का है, नियों है . नही. हानि है। धर्म र सलिए गमा है।" पोसत्र को सोशल कोमोजमा ओमपपोतो है,
गोको जानना mant, लिए नोरा.मोहरमहीमही कारण । मे विकास सहै। कोटि गमावा पीर समय में ही देखो विपक्षमा विरखनाaai कोनहीगारवार nt, 'मामा समamvोकर।" मोरिस परव-पारोबार में हो,
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