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पामाधी तुर में
करने की मा भीमा है। कोपोर माह-विहीन
अमीर में मनापाको TREET, भाषा देने वान को पलीगामा भीरको बागमका में भी कोई कमी नहीं था। बन का मही सगा। भाग प्रौर भोर में मुझे मचि है; और ग N EET पागहर भार नही है, को कभी एक बोझ बन कर पाता है। परन्तु यही पर पामार्यत्री सुनी वो जी-भरार पास से देखा नियाr-faनिमय करने का पनगा भी मिसा । रहत पछी तरह यार है। गनकोवामदीया प्रातिपय प्रानों को मेकर पाचाग्री में काफी स्पष्ट ही । तभी पायरिये सौम्य योर माय विहीन है। महिया पौरमपरिरह के मरने मार्ग में उन्हें इतना सहन यिाम है कि हार का समाधान करन में मस्तक पर कुछ अधिक जोर देना नहीं पडना । पानोरना से उत्तर नहीं होते। साहियाना उनो लिए नहा है. इसलिए अनिता भी नही है । ह केवल एकापना और माह-विहीन र समयंन । वे काल वसा है। कुछ कहना चाहते हैं बिना किसी माक्षर के प्रभावशाली ढग से प्रस्तुत कर दी है। प्राश्वस्त तो न तव हपा था, नमाज तक हो सका है : परन्तु विगट मानवता में उनकी मट मास्या ने मुझे निश्चय ही प्रभावित किया था। वह अर प्रान्दोलन के जन्मदाता हैं। उनकी दष्टि में चरित-उत्थान का वह एक सह. मार्ग है। कवि की भांति मैं अरावन की प्रण-बम में काव्यात्मा तुलना नहीं कर सकता। करना चाहंगा भी नही। उम सारे प्रान्दोलन के पीछे जो उदात भावना है, उसको स्वीकार करते हुए भी उसकी सचालन व्यवस्था में मेरा मारथा नहीं है। परन्तु उन द्रों का मूलाधार वही मानवता है, जो सला। है, अभिन्न है और है अजेय ।
विश्व में सत्ता का खेल है। सत्ताअर्थात स्व की महिमा : इसीलिए वह माल्याणकर है। इसी प्रकल्पारण का निकालने के लिए यह भएमा प्रान्दोलन है। इन सबका दावा है कि चरित्र-निर्माण द्वारा सता को कल्याण कर बनाया जा सकता है: पग मुझे लगता है कि उद्देश्य शुभ होने पर भी यह दावा ही सबसे बड़ो वाधा है । क्योकि जहाँ दावा है, वहाँ साधन