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प्राचार्यश्री सुनी
उनके पालन करने में प्रत्रिक प्राध्यात्मिक पावित प्रवेशित है । परन्तु मावारण व्यक्तियों के लिए प्रतों के पालन में भी चरित्र चाहिए। जनता में इन पांचों तों के प्रभाव मग रूप किये हुए हैं | महिसा ही को लीजिये। इसके प्रभाव का बहुत स्पष्ट रूप तो प्रामिष भोजन है । परन्तु इसके मोर मी म रूप है, जिनको पहचानने के लिए विकसित बुद्धि प्रवेशित है। इनके पालन में याग की धावश्यकता है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि अगर कोई व्यक्ति सच्ची निष्ठा से इनका पान करे तो उसके जीवन में एक बड़ा परिवर्तन हो जाता है। समाज से उसका सम्बन्ध मानन्दमय हो जाता है, वह भीतर से मुखी बन जाता है | यह है कि श्रद्धा हो । बो का पालन भीतरी प्रेरणा से हो, बाहर के दबाव से नहीं ।
भारतीय संस्कृति का एक पुष्प
जिस पद्धति से प्राचामंत्री तुलसी ने प्रणुव्रत प्रान्दोलन प्रारम्भ किया मौर उसको समस्त भारत में फैलाया, उससे उनके व्यक्तित्व का प्राबल्य और माहात्म्य स्पष्ट होता है । पहले तो उन्होंने इस काम के लिए अपने ही जैन-सम्प्रदाय के कुछ साधुषों और साध्वियों को तैयार किया । भव उनके पास अनेकों विद्वान्, सहनशील, हर एक परिस्थिति का सामना करने को शक्ति रखने वाले सहायक हैं जो पद यात्रा करते हुए भारत के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में संचार करते हैं और जनता में नये प्राण फूंक देते हैं। उनकी नियमबद्ध दिनचर्या को देखकर जनता प्राश्चर्य चकित हो जाती है । उसके पीछे शताब्दियों को परम्परा काम कर रही है । प्राचार्यश्री और उनके सहायको को जीवन शैली प्राचीन भारतीय संस्कृति का एक विकसित पुष्प है। इस प्रकार की जीवन शैली भारत के बाहर नहीं देखी जा सकती है। इस पुष्प को प्राचार्यजी ने भारत माता की सेवा में समर्पित किया है । प्राजकल के गिरे हुए भारतीय समाज में प्राचार्यश्री का जन्म हुमा यही शुभ लक्षण है कि समाज का पुनरुत्थान प्रवश्य होगा ।
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