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सुधारक तुलसी
४३ मापिक दशा सुधरे । इस योजना के लिए आवश्यक था कि सच्चरित्र, परहितरत, कर्तव्य-परायण, सदाचारी नेता, हाकिम, व्यापारी, शिक्षक, कारीगर प्रादि देश के विकास की बागडोर अपने हाथ में लें। यदि इन वगों मे सदाचार की कमी हुई तो देश का हित न होकर प्रहित हो जाएगा और देश उन्नति की भोर मासर नहीं हो सकता । दुर्भाग्यवश जिस समय यह सुअवसर प्राया और माशा हुई कि प्रब इतने वर्षों के कठोर परिश्रम और त्याग के फलस्वरूप देश की उन्नति होगी और गरीबी मिटेगी, उस समय देखा गया कि कर्मचारियों, नेताओं, व्यापारियों प्रादि मे अनाचार और स्वार्थ को वृद्धि हो रही है ; क्योकि अब इनके लिए नित्य नये अवसर प्राने लगे। मगर यही क्रम बना रहा तो नई योजनामों का कोई लाभ न होगा और उनकी सफलता सदिग्ध बन जाएगी। देश में चारों पोर यही मावाज उठने लगी कि शासन को इस प्रकार के मगरमच्छों से बचाया जाए और भ्रष्टाचार (Corruption) को दूर किया जाए।
ऐसे समय मे भाचायं तुलसी ने अपने प्रावत-मान्दोलन को प्रबल किया और भनेक वगो के सदस्यों को पुन. सदाचार की और प्रेरित किया। प्राचार्य तुलसी ने यह काम पहले ही शुरू कर दिया था, पर इसकी प्रधानता और गतिशीलता स्वतनता के बाद, विशेष रूप से बढ़ी । इनका यह भान्दोलन अपने ढंग का निराला है। धर्म के सहारे व्यक्ति को ये प्रती बनाते हैं और उसको इस प्रकार बल देकर कुमाग भौर कुरीतियों से अलग करके सदाचार की भोर अग्रसर करते हैं। यह व्रत छोटे-छोटे होते हैं, पर इनका प्रभाव बहुत ही गम्भीर होता है, जो व्यक्ति तथा समाज के जीवन मे क्रान्ति सा देता है। व्यापारियों, सरकारी कमंपारियों, विद्यार्थियों मादि में यह प्रान्दोलन चल चुका है और इसके प्रभाव में सहस्रों व्यक्ति भा गुके हैं। प्राज इसकी महत्ता स्पष्ट न जान पड़े, पर कल के समाज में इसका प्रसर पूरी तरह दिखाई पड़ेगा, जब समाज पुनः सदाचार पोर धर्म द्वारा अनुप्लावित होगा पौर भविष्य में प्राज की बुराइयों का अस्तित्व न होगा । मायार्य तुलसी और उनके शिष्य मुनिगणना कार्य भविष्य के लिए है पोर नये समाज के संगठन के लिए सहायक है। इसकी वफलता देश के कल्याण के लिए है। माग है, यह सफल होगा भोर मालार्य तुलसी सुधारको को उस परम्परा में जो इस देश के इतिहास मे बराबर उन्नति लाते रहे हैं, अपना मुख्य स्थान बना जाएंगे। उनके उपदेश मोर नेतृत्व से समाज गौरवशील बनेगा)