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पराधी
मारा
नही पहना -भारत का मान-दामा को मान न गुममा ना । महिला में मामूलन
मायाHI REit भीगार। NATiraimit fan I उग-पन्नों से परिमान मदहोगा,
गोदोमो । उम्पो पET तो प्रमोचन ही महा IF TRUTH में घर पर मार में बिना मन बने उससे
पिनार मेर-भर में पाने के लिए मीन की तो मानों में होने पाप नामक कारण नहीं हो
निगोपिया ना जाने के कारण या माम मा गरम करने काम में समान से न जाने के कारण तापी -नहि पिार मे उपोम-पा मारम्भ करें तो उनसेनमा गुमतमा पर पोर प्रषिकमे-पशिक सादन में होगी। उन उपोष-पारा प्रारको को जति जीवित देने का भी समेट लाम होना चाहिए, परन्तु यह नाभ किसी मसिन-
विरको सम्पत्ति नहीं, बल्कि भमिकों को ही सम्मिलित सम्पत्ति मानी जानी पाहिए । मापनों को कायम सने और बहाने पतिरिक्त बहलाम-धन उन उद्योग-धन्धों में समे हुए श्रमिकों को शिक्षा, चिकित्सा तपा सांस्कृतिक मुविधाए देने के लिए उपयोग में लाया जा सरता है। परन्तु उयोग-धन्धों से नाम पवाय होना चाहिए। समाजवादी देशो में ऐसा ही किया जाता है।
मेरी बात से मुनियों का समाधान नहीं हुपा । उन्होंने वहा-जिस प्रणाला पोर व्यवस्था मे लाभ का उद्देश्य रहेगा, उस व्यवस्या से निश्चय ही शोपण होगा । वह व्यवस्था और प्रणाली महिंसा मोर पारस्परिक सहयोग की नहा हा देगी।
मैं मुनियों का समाधान नहीं कर सका; परन्तु इस बात से मुझे अवश्य तोप हुमा कि प्रणवत-प्रान्दोलन के अन्तर्गत शोषण मुक्ति के प्रयोगों पर चा जा रहा है। मैंने मुनिजी से अनुमति लेकर एक प्रश्न पूछा-~-माप अपने व्यक्तिगत र्य को छोड़कर समाज-सेवा करना चाहते है ; ऐसी अवस्था में मापका पाज और सामाजिक व्यवहार से पथक रहकर जीवन बितामा क्या तर्कसगठ