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मेरा सम्पर्क मोर सहायक हो सकता है ? इसमे वैचित्र्य के अतिरिक्त कौन सार्थकता है ? इससे मापको मसुविधा ही तो होती होगी।
__ मुनिजी ने बहुत शान्ति से उत्तर दिया-हमे असुविधा हो, तो उसकी चिन्ता हमे होनी चाहिए । हमारे वेश अथवा कुछ व्यवहार प्रापको विचित्र लगे हैं, तो उन्हें हमारी व्यक्तिगत रुचि या विश्वास की बात समझ कर उसे सहना चाहिए। हमारे बो प्रयत्न पापको समाज के हितकारी जान पड़ते हैं, उनमे तो भाप सहयोगी बन ही सकते हैं !
मुनिजी की बात तर्कसगत लगी। उनके चले जाने के बाद ख्याल' प्राया कि यदि किसी को व्यक्तिगत रुचि और सन्तोष, समाज के लिए हानिकारक नहीं हैं, तो उनसे खिन्न होने की क्या जरूरत ? यदि मैं दिन-भर सिगरेट फूकते रहने की अपनी पादत को मसामाजिक नहीं समझता, उस प्रादत को क्षमा कर सकता है, तो जैन मुनियो के मुख पर कपड़ा रखने और हाथ में चंबर लेकर चलने की इच्छा से ही क्यों खिन्न हूँ ? प्राचार्य तुलसी की प्रेरणा से भगुवत-आन्दोलन यदि माध्यात्मिक उन्नति के लिए उद्बोधन करता हमा जनसाधारण के पार्थिव कष्टों को दूर करने और उन्हें मनुष्य की तरह जीवित रह सकने मे भी योगभूत बनता है तो मैं उसका स्वागत करता है।