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सुधारक तुलसी
डा० विश्वेश्वरप्रसाद, एम० ए०, डी० लिट अध्यक्ष, इतिहास विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय
विश्व के इतिहास में समय-समय पर अनेक समाज-सुधारक होते रहे हैं, जिनके प्रभाव से समाज की गति एक सोधे रास्ते पर बनी रही है । जब-जब वह राजमार्ग या धर्ममार्ग को छोड़कर इधर-उधर भटकने लगता है, तब-तब कोई महान नेता, उपदेशक और सुधारक भाकर समाज की नकेल पकड़ उसे ठीक मार्ग पर ला देता है । भारतवर्ष के इतिहास मे तो वह बात घोर भी सही है । इसीलिए गीता मे भगवान् कृष्ण ने कहा था कि "जब-जब धर्म की हानि होती है, तब-तब अधमं को हटाने के लिए में भवतरित होता हूँ ।" महान सुधारक ईश्वर के अश हो होते हैं मीर उसी की प्रेरणा से वह समाज को धर्म के राजमार्ग पर लाते हैं | समाज की स्थिरता और दृढता के लिए भावश्यक है कि वह धर्म की राह पकड़े | यह धर्म क्या है ? मेरी समझ मे धर्म वही है, जिससे समाज का अस्तित्व बने । जिस चलन से समाज विश्वखल हो भीर उसकी इकाई को ठेस लगे, वह श्रधर्म है। समाज को श्रृंखलाबद्ध रखने के लिए मौर उसके भगो-प्रत्यगो में एक्ता और सहानुभूति बनाये रखने के लिए धर्म के नियम बनाये जाते हैं । यद्यपि समाज की गति के साथ इन नियमो में परिवर्तन भी होता रहता है, फिर भी कुछ नियम मौलिक होते हैं जो सदा ही समान रहते हैं और उनके प्रकुलित होने पर समाज में शिथिलता था जाती है, धनाचार बढ़ता है और समाज का अस्तित्व ही नष्ट होने लगता है । ये नियम सदाचार बहलाते हैं और हर युग तथा काल मे एक समान हो रहते हैं । शास्त्रों में धर्म के दस लक्षणों का वर्णन है । ये लक्षण मौलिक है मोर उनमे उथल-पुथल होने से समाज की स्थिति हो खतर में पड़ जाती है । सत्य, स्तेय, अपरिग्रह आदि ऐसे ही नियम है जो समाज के प्रारम्भ से माज तक और भविष्य में समाज के