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६६.
आचार्य श्री का उत्तर ........... जिनेश्वरों की आज्ञा .... उत्सूत्राचरण का फल ऐसे साधु पिशाचों को वंदना महापाप है कुगुरु वंदनादि का प्रायश्चित्त ........................ दुराचारियों का कु-संघ आज्ञा-भ्रष्टों के समूह को संघ मत कहो साँप के समान विषैला संघ फूटे हुए अंडे के समान ...... कौए के समान विष्ठा खाने वाले .................. हड्डियों का ढेर .......... कुशीलियों के सहायक भी दोषी ............... मध्यस्थ रहने वाले भी व्रत लोपक हैं .............. ऐसों को उपदेश अनुज्ञा भी नहीं कुसंघ से तो नरक अच्छा .... बहुरुपिये जैसे .. दसवां आश्चर्य
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