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दसवां आश्चर्य दसमगमच्छेरमिणं असाहुणो साहुणुव्व पुज्जति । होहंति तप्पसाया दुभिक्खदरिद्धडमरगणा ||१५७||
असाधु, साधु की तरह पूजे जाते हैं, यह दसवां आश्चर्य है। इस आश्चर्य के प्रभाव से इस क्षेत्र में दुष्काल, दारिद्रय और भय उत्पन्न होते हैं ।।१५७।।
जे संकिलिट्ठचित्ता माइट्ठाणंमि निच्चतल्लिच्छा । आजीवगभयघवत्था मूढा णो साहुणो हुँति ||१५८।। मूलगुणविप्पमुक्का छक्कायरिऊ असंजया पायं । गुणिमुणिपओसजुत्ता धिट्ठाणायारसूरिमुहा ||१५९|| सुसमायारीब्भट्ठा नियडिपरा भत्तलोयथुइदक्खा | पच्छन्नसव्वसंगह-कारिणो सव्वभुज्जपरा ||१६०।।
जो साधु संक्लिष्ट चित्तवाले हैं, माया स्थान में नित्य तत्पर रहते हैं और आजीविका के भय से ग्रसित हैं, ऐसे मूढ़ वेशधारी, साधु नहीं हो सकते ।।१५८।। ___मूलगुण से रहित, छहकाय जीवों के शत्रु, प्रायः असंयमी, गुणवान् साधुओं पर द्वेष रखने वाले, धृष्ट, अनाचारी अथवा धिक् स्थानीय ।।१५९।।
उत्तम समाचारी से भ्रष्ट, पापाचार्य, नियडि (माया) में तत्पर, भक्तों की स्तुति करने में दक्ष, गुप्त रीति से परिग्रह संग्रह करने वाले, सर्वभक्षी ।।१६०।।
सुद्धं सुसाहुधम्म अंगे न धरेइ नो पसंसेइ । सद्धागुणेहिं रहिया परमत्थचुया पमायपरा ||१६१।। गिहिपुरओ सज्झाय करंति अण्णोणमेव जुझंति ।
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