________________ गुरु के प्रति बहुमान भाव के बिना, परमात्मा के प्रति बहुमान करने या आत्मसाक्षात्कार आदि के लिए प्रयत्न करते है, उनको उसमें कभी सफलता नहीं मिलती। यह सत्य बात हृदय में लिख कर रखना। - वैराग्य देशनादक्ष आ.श्री. हेमचंद्रसूरिजी उपेक्षा और माध्यस्थभाव में क्या अंतर है ? अपने को जिसके प्रति सद्भाव है, पर वह अपने से सुधरे-समझे वैसा न हो तब उसके प्रति उपेक्षा भाव और दूसरों के प्रति माध्यस्थ भाव रखना। जैसे चिंटि (कीडी) मरणावस्था में हो, उसे नवकार सुनाने का क्या अर्थ? वह माध्यस्थ भाव! करुणा के भाव में सूचन करना न सूने तो उपेक्षायामाध्यस्थभाव! MULTY GRAPHICS (022) 23873222-423884222