________________
श्रावकों को नहीं बताना? केइ भांति उ भण्णइ, सुहुमवियारो न सावगाण पुरो । तं न जओ अंगाइसु,
सुच्चइ तव्वन्नणा एव ||२६|| लट्ठा गहियट्ठा, पुच्छियट्ठा विणिच्छियट्ठा य । अहिगयजीवाजीवा,
अचालणिज्जा पवयणाओ ||२७||
कुछ साधु कहते हैं कि श्रावकों के सामने साधुधर्म का सूक्ष्म विचार नहीं बताना चाहिए । उनका ऐसा कहना असत्य है । क्योंकि अंगादि शास्त्रों में श्रावकों का वर्णन इस प्रकार आया है कि-श्रावक लब्ध अर्थ वाले, गृहित अर्थ वाले, पृच्छित अर्थ वाले, विनिश्चित अर्थ वाले, जीव अजीव के ज्ञाता एवं निर्ग्रन्थ प्रवचन सिद्धान्त में अचल दृढ़ होते हैं ।। २६-२७।।
जो कुशीलिए होते हैं, वे अपनी कमजोरी को छुपाना चाहते हैं। उन्हें यह भय बना रहता है। कि कहीं हमारी कमजोरियाँ उपासक वर्ग नहीं जान ले । जानता वही है, जिसे उनके आचार विचार की वास्तविक जानकारी हो । अनजान या अल्पज्ञ उनकी पोल को नहीं समझ सकते । इसलिए वे चाहते हैं कि श्रावकों के सामने साधुओं की समाचारी के विधि विधान नहीं बताने चाहिए ।
भोले-भाले अनभिज्ञ भक्तों में ही कुशीलियों की दाल गलती है या फिर स्वार्थी एवं पक्षपातियों में । ऐसे बोंगे लोगों
15