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और साता गारव का नशा इस प्रकार छाया रहता है कि जिससे सद्गुणों को दबकर नीचे उतरना पड़ता है । __वर्तमान में धूमधाम का अर्थ 'आडम्बरी प्रवृत्ति' किया जाता है।
आचार्य ही जब विशिष्ट क्रोधी, अभिमानी अथवा आडम्बरी हो, तो उनके अंतेवासी कैसे हो सकते हैं ? गुणानुरागी साधु, ऐसे आचार्य का त्यागकर गुणों के सागर गुरु का आश्रय प्राप्त करते हैं।
शरणागत घातक आचार्य जह सीसाइ निकिंतइ कोइ सरणागयाण जीवाण । तह गच्छमसारंतो, गुरा, वि सुते जओ भणिओ ||९६||
जिस प्रकार कोई पापी जीव, अपनी शरण में आये दुःखी जीव की घात करने रूप महान् दुष्कर्म करता है, उसी प्रकार गच्छ की सारणा, वारणा आदि नहीं करने वाला आचार्य भी शिष्यों के समूह रूप गच्छ का घात करता है-ऐसा सिद्धांत में कहा है ।।९६।। __ आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी कहते हैं कि वह आचार्य शरणागतघातक जैसा पापी है, जो गच्छ की सारणा वारणादि नहीं करके विशुद्ध निग्रंथ गच्छ की (जो तरण-तारण जहाज समान होता है) अपनी दुराचारी वृत्ति एवं सत्वहीनता से दुराचारमय बनाकर पतन का निमित्त बना देता है । __भयभीत प्राणी किसी की शरण में जाता है-यह विश्वास लेकर कि वह परोपकारी, शरणागत-रक्षक एवं शांति का धाम है । किन्तु वह दुरात्मा आगत विश्वासी व्यक्ति का रक्षक नहीं
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