Book Title: Vandaniya Avandaniya
Author(s): Nemichand Banthiya, Jayanandvijay
Publisher: Guru Ramchandra Prakashan Samiti

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Page 150
________________ वे यह जानते हैं कि अभिनिवेशी जीवों का सुधरना प्रायः असंभव है। उनके मन में गांठ होती है । वे स्वार्थवश ही समीप आते और मिलते हैं और अपना मतलब गांठते हैं। बाद में लोगों में भ्रम फैला कर उन्हें अपने पक्ष में मिलाने की चेष्टा करते हैं । इसलिए इनसे बचकर रहना ही अच्छा है । कुसंघ से तो नरक अच्छा गब्भपवेसी वि वरं भद्दवरो नरयवासपासो वि । मा जिण आणालोव करे वसणं नाम संघे वि || १३२ || गर्भ प्रवेश भी अच्छा और नरकावास का बंधन भी अच्छा है, किन्तु जिनाज्ञा के लोपक संघ में रहना अच्छा नहीं है ।।१३२।। - जिनेश्वर भगवंत, जिन शासन एवं जिनवाणी के पूर्ण रसिक आचार्यश्री कहते हैं कि जिनाज्ञा - लोपक संघ के साथी-सदस्य एवं समर्थक बनने से तो मृत्यु प्राप्त कर पुनः गर्भावास में जाकर दुःख भोगना अच्छा है और नरक में जाकर नारकीय कष्ट सहना उत्तम है, परंतु धर्म-द्रोही के पड़ौस में भी रहना ठीक नहीं है । गर्भवास और जन्म, दुःखदायक है । दुःख की प्रचुरता से ओतप्रोत है और नरक का निवास तो भयंकर दुःखों की खान में दीर्घ निवास करने के समान है। गर्भ के दुःखों से तो प्राणी कुछ महीनों में ही मुक्त हो सकता है, किन्तु नरक के दुःखों से मुक्त होने में दस हजार वर्ष से लगाकर असंख्य काल तक का अमर - निवास हो जाता है । यह दुःख सामान्य नहीं है। नरक के भयंकर दुःखों की कोई भी चाहना नहीं करता, न अच्छा ही बतलाता है । किन्तु 132

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