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उनमें मोह प्रेरक कथा कहानियाँ कहकर अपना रंग जमाने में लगे रहते हैं । समझदार लोग ही उनकी इस प्रवृत्ति पर समझ लेते हैं कि इनमें संयमप्रियता नहीं, परंतु मोहप्रियता है ।।१४३।।
उन व्याख्याताओं की दृष्टि, भाषा समिति, साधुता एवं धर्मोपदेश की सीमा में नहीं रहती। उनकी एक मात्र इच्छा जनरंजन कर श्रोता समूह के मन पर अपनी छाप जमाने की होती है । महिलाओं का मन रंजन करने की होती है । इसके लिए वे सभी मर्यादा को तोड़कर स्वच्छन्दी भी बन जाते हैं । यदि कोई उन्हें अनुचित प्रवृत्ति नहीं करने के लिए कहता है या समाचारी की उपेक्षा नहीं करने का निवेदन करता है, तो कहते हैं कि धर्म, लोक दिखाऊ क्रिया में नहीं है, वह तो आत्मा की वस्तु है आदि । इस प्रकार वंचकता का पाप भी करते हैं ।
मंडलिजेमणिमाइववहारपरंमुहा असंबद्धा | सद्दकरा झंझकरा तुमंतुमा पावतत्तिल्ला ||१४४||
मंडली में बैठकर आहार करना इत्यादि व्यवहार और पारस्परिक संबंध से परांमुख, शब्द करने वाले (जोर जोर से बोलने वाले या रात को जोर-जोर से बोलने वाले) झंझकारी (कलह करके समुदाय में भेद खड़ा करने वाले) तूं 'तेरा' आदि तुच्छ वचन बोलने वाले और पापाग्नि में तस रहने वाले हैं अथवा पाप में ही संतोष मानने वाले हैं ।।१४४।।
सिढिलालंबणकारणठाणविहारेहिं सव्वमायंति । भत्तजणंगुणलेसो वि भासति महमेरुसारिच्छो ||१४५||
अवलम्बन की शिथिलता के कारण स्थान और विहार में प्रमाद करते हैं और अपने अल्प गुण को भी भक्तजनों के आगे
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