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द्वेषियों से लड़ाने, झगड़े करवाने और सिर फुड़वाने में भी कर सकते हैं।
वासनापूर्ति का साधन भी इन्हीं में से प्राप्त करते हैं
और अपने पाप का ढक्कन भी इन्हें बनाते हैं । ये हड्डियाँ उन निर्जीव हड्डियों से भी अधिक भयंकर होती है । इनसे जिन शासन की-जैन परंपरा की दुर्दशा होती है।
आचार्यश्री के हृदय में कुशीलियों द्वारा जिनधर्म एवं श्रमण परंपरा की की हुई दुर्दशा से बड़ा खेद हुआ । उन्होंने उपरोक्त शब्दों में अपना विरोध व्यक्त किया । आचार्यश्री की ये खरीखरी बातें धर्म-प्रेम से सराबोर है । जब फलों-फूलों से भरी पूरी सुरम्य बाड़ी को बंदरौं का टोला नष्ट करने लगे, तो उसके रखवारे और माली को दुःख होगा ही । ऐसी दशा में कोई उसे द्वेषी, कटुभाषी या क्रोधी कहे, तो यह उसकी मूर्खता है । कशीलियों के सहायक भी दोषी
जे साहज्जे वट्टइ आणाभंगे पवट्टमाणाणं । मणवायाकाएहिं समाणदोसं तयं बिंति ।।१२७||
आज्ञा भंग में प्रयत्नशील ऐसे दोनों (साधु या श्रावक) के जो सहायक होते हैं, वे मन, वचन और काया से समान दोष वाले हैं ।।१२७।। ।
साधु हो या साध्वी और श्रावक हो या श्राविका, कोई भी हो, जो जिनाज्ञा के भंजक, लोपक एवं विराधक ऐसे कुशीलियों के सहायक होते हैं, वे भी मन, वचन और काया से जिनेश्वर भगवंतों की आज्ञा का भंग करने वाले हैं । उन्हें भी उन कुशीलियों के समान ही विराधना का पाप लगता है । 124