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कार (यद्वातद्वा) तुच्छ वचन बोलते हैं और स्वयं दूसरों पर कलंक लगाते हैं तथा जिस गच्छ में साध्वियों से पात्र तथा विविध उपकरण लेकर साधु उनका परिभोग करते हैं, तो हे गौतम! वह कैसा गच्छ है? अर्थात् उस समूह को गच्छ कैसे कहा जाय? ।।४९-५०।।
जहाँ मर्यादा हीनता है, वहाँ साधुता है ही कहाँ ? स्त्रियों से सम्पर्क, साध्वियों से लेन देन, ये सब असाधुता के लक्षण हैं । जिस समूह में साध्वी वर्ग स्वच्छन्दता पूर्वक विचरण करता है, वह कुगच्छ है।
वज्जेह अप्पमत्ता ! अज्जासंसग्गिअग्गिविससरिसा [सरिसी] |
अज्जाणुचरो साहू, __ लहइ अकित्तिं खु अचिरेण ||५१।।2
जिस गच्छ में साधु, अप्रमादी होकर, साध्वियों के संसर्ग को अग्नि और विष के समान समझकर छोड़ देते हैं, (वह गच्छ है) क्योंकि साध्वियों के संसर्ग वाला साधु, निश्चय ही निन्दित होता है ।।५१।। .
जत्थ हिरण्णसुवण्णं, हत्थेण पराणगं पि नो छिप्पे । कारणसमल्लियं पि हु गोयम!
गच्छं तयं भणिमो ||५२।। हे गौतम! जिस गच्छ के साधु, दूसरों के चांदी सोने का भी 1. यह प्रवृत्ति तो लगभग सभी गच्छों में प्रवृत्तमान हो गयी है। पात्रा रंगने का कार्य, रजोहरण बनाने
का काम लगभग साध्वियाँ ही करती है। यह कहां तक योग्य है? इस पर गच्छाधिपतियों को चिंतन मनन करना चाहिए। 2. तुलना :- गच्छाचार पयन्ना गाथा ६३ । 3. गच्छाचार पयन्ना गाथा ६०
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