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वक्खाणस्स य मज्झे, महिला गायंति अप्पगुणा ||७१|| वे अपने हीनाचारी गुरुओं के भी नंदी (त्रिगड़े की रचना ) बलिपीठ ( स्तूप) आदि करते और करवाते हैं । व्याख्यान में महिलाएं उनके गुणगान करती है । इससे वे अपनी कृतकृत्यता का अनुभव करते हैं ।। ७१ ।।
देव मंदिरों के समान गुरु मंदिर, समाधि, स्मारक आदि भी खड़े किये । पर वहाँ योग्य गुरु, अयोग्य गुरु का भेद भूला दिया गया । 1 आचार्यश्री कहते हैं कि व्याख्यान में महिलाएं उन साधुओं का गुणगान करती है ।
केवलथीणं पुरओ वक्खाणं पुरिसअग्गओ अज्जा । कुव्वंति जत्थ मेरा, नडपेडकरांनिहा जा ||७२|| जिस गच्छ में साधु, केवल स्त्रियों के सामने व्याख्यान करते हैं और साध्वियाँ, केवल पुरुषों को संबोधन करती है । 3 उन साधुओं को अमेरा ( मर्यादा रहित ) नटों की टोली के समान जानना चाहिए ।। ७२ ।।
पतन का यह प्रमुख कारण है। स्त्री, पुरुषों के अधिक सम्पर्क का परिणाम कभी भी अच्छा नहीं हो सकता । इससे चारित्रिक पतन होता ही है ।
1. धर्मस्थान बनाने का उपदेश तो खुले रूप में होने लग गया है। उसके लिए साधु टीप मंडवाने भी लग गये है। यह प्रथा तो किसी न किसी रूप में चल ही रही है। महिलाएँ ही नहीं, पुरुष भी गाते हैं। कभी-कभी तो ऐसे गुणगान व्याख्यान का बहुतसा समय रोक लेते हैं। यह खटकता है। यद्यपि गुणगान करना बुरा नहीं है, बुरा है स्त्रियों, बच्चियों के द्वारा गुणगान करवाना एवं साधुओं का उससे कृतकृत्यता मानकर फूलना। फिर भी इस प्रथा में संशोधन तो होना चाहिए। 2. वर्तमान में बच्चीओं की शिबिर में साधुओं का प्रवचन प्रारंभ हो गया है साध्वियाँ छोटे बच्चों की शिबिर लगाने लगी है, परिणाम खराब ही आयगा ।
3. यहां पर भी साध्वियों को केवल पुरुषों की सभा में व्याख्यान का निषेध है। प्रबुद्ध वर्ग चिंतन करे।
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