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निरोध होना कठिन हो गया है ।
भ्रष्टाचार की रोक में एक बड़ी बाधा है - समूहवाद - गच्छवाद
की ।
गच्छ में रहे हुए भ्रष्टाचारी को भी सिर पर चढ़ाना और अन्य गच्छ के शुद्धाचारी का विरोध करना, यह गच्छवाद का भीषण दोष है । गच्छवाद की रक्षा के लिए मिथ्यात्वी, आडम्बरी और व्यभिचारी को भी सिर पर बैठाया जाता है। ऐसी दशा में वीर धर्म एवं निर्ग्रन्थ परंपरा की रक्षा नहीं हो सकती ।
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उपासक वर्ग भ्रष्टाचार का सफल उपाय कर सकता है । जहाँ वह स्त्रियों का अधिक सम्र्पक देखे, वहाँ प्रभावशाली विरोध करे, उन्हें जाहिर में लावे । उनका वंदन व्यवहार बंद कर दे, तो भ्रष्टाचार समाप्त हो सकता है । यह मानना भूल है कि 'इससे हमारे धर्म की बदनामी होगी ।' संसार के लोग यह तो जानते हैं कि सभी समूह सदाकाल पवित्र नहीं रहते । बुराइयाँ सभी में उत्पन्न होती है । बुरा समूह वह है जो बुराइयों को भी भलाई के आवरण में ढककर सिर पर उठाये फिरता है । जो संस्था बुराइयों को दूर करती रहती है, उसको सहन नहीं करती, वह प्रशंसनीय होती है । भ्रष्टाचारियों का प्रभावशाली उपाय होता रहे, तो इससे समाज की प्रशंसा होती है । लोग भी कहते I हैं कि "जैन समाज भ्रष्टाचारियों को निकाल फेंकता हैं। यह जाग्रत समाज है । सुसाधुओं की ही इसमें प्रतिष्ठा होती है ।" जिस प्रकार रिश्वतखोरी का तत्परता से किया हुआ जाहिर उपाय, . शासन की प्रतिष्ठा बढ़ाता है, उसी प्रकार व्यभिचारियों को दूर करने का प्रभावशाली उपाय समाज की प्रतिष्ठा बढ़ाता है ।
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