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नरयगइहेउजोइसनिमित्त तेगिच्छमंतजोगाई । मिच्छत्तरायसेवं नीयाण वि पावसाहिज्जं ||१३||
नरकगति के कारण रूप ऐसे ज्योतिष, निमित्त, मंत्र, चिकित्सा और योग (चूर्णादि वासक्षेपादि का प्रयोग) आदि करते हैं और रागपूर्वक मिथ्यात्व का सेवन करते हैं अथवा मिथ्यादृष्टि राजा की सेवा करते हैं । वे नीच पुरुषों के पाप कार्यों में भी सहायक होते हैं ।।६३।।
यह है निग्रंथनाथ भगवान् महावीर के मंगलमय श्रमणों के पतन का निम्नतम चरण । जब अधोदृष्टि हुई और एक पग नीचे उतरे, तो उतरते उतरते उससे भी नीचे चले गये ।। रुककर पीछे देखा भी नहीं । उतरते-उतरते गृहस्थों की भूमि पर आकर उससे भी नीचे चले गये । आत्मसाधना तो छूट ही गयी । मठवासी होकर ज्योतिषी भी बन गये। उन्होंने देखा कि ब्राह्मण वर्ग, ज्योतिष के सहारे जनता में प्रतिष्ठित भी है और द्रव्य भी प्राप्त कर लेता है । जैन समुदाय भी इस निमित्त से इनका आदर करता है । क्यों न हम भी ज्योतिषी बन जावें और यह लाभ भी हम प्राप्त कर लें । उन्होंने ज्योतिष विद्या सीखी। निष्णात हुए और गृह, नक्षत्र, लग्न, भविष्य फल आदि बताने लगे । गृहशांति के उपाय बताकर जाप आदि करने लगे। मंत्र साधना से लोगों से हिताहित की साधना करने लगे । आयुर्वेद का अभ्यास करके वैद्य भी बन गये और मंत्रित चूर्ण के जोग से सुरक्षा की गारंटी भी देने लगे । स्वार्थ के वशीभूत होकर वे नामधारी श्रमण, मिथ्यात्वी देवों की आराधना करने लगे । 1. वर्तमान में जन्मकुंडली बनाना, लग्न के मुहूर्त देना, विधवा के संबंध में कुंडली देखना आदि कार्य हो गये हैं, हो रहे है। श्रावकों की सुख शांति के लिए होम हवन भी नामधारी साधु करने लगे है।
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