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जैसे-ओम काली महाकाली मुण्डमालिनी, खड्गखप्परधारिणी महिषासुरमर्दिन, ममदुष्टदुर्जनवैरिविनाशाय स्वाहा । ओम काल भैरव......ओम घंटाकरणमहावीर.....आदि अनेक प्रकार के मंत्र जाप कर किसी के शत्रु का नाश करने, किसी का रोग मिटाने का विश्वास देने, किसी का दारिद्र दूर करने और विवाह, संतति आदि अनेक प्रकार के मनवांछित फल देने दिलाने की शक्ति धराने वाले के रूप में प्रसिद्ध हुए।
इस प्रकार जैन श्रमण नामधारी, व्यक्ति, एक प्रकार से ब्राह्मण वर्ग जैसा बन गया । ब्राह्मण वर्ग भी देवमंदिरों की व्यवस्था, पूजा, ज्योतिष, गृहशांति, भविष्य दर्शन, मंत्र सिद्धि
और वैद्यक आदि करता था और ये भी यही करते थे । दोनों धर्म-धुरा के धारक एवं धर्मोपदेशक थे। दोनों की आजीविका तथा इच्छा पूर्ति का साधन समाज ही था । वास्तविक त्यागी और सांसारिक प्रपंच तथा भोगासक्ति से वंचित कोई नहीं था ।
आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी के विवरण तथा अन्य ग्रंथों से उस समय के श्रमण नामधारी की यही दशा दिखाई देती है। एक ओर निग्रंथ प्रवचन का घोष है कि
जे लक्खणं सुविणं पउंजमाणे, निमित्तकोऊहल संपगाढे। कुहेडविज्जासवदारजीवी, न गच्छई सरणं तम्मि काले ।।४५।।
जो साधु, लक्षण शास्त्र और स्वप्न शास्त्र का प्रयोग करता है तथा निमित्त (भविष्य) बतलाता है, कुतूहल (चकित कर देना) में आसक्त रहता है, जो आश्चर्य उत्पन्न करके आश्रव बढ़ाने वाली विद्या से अपना जीवन चलाता है । ऐसे असंयमी के जब अशुभ कर्म उदय में आवेंगे, तब उसका रक्षक शरण देने वाला कोई नहीं होगा । ___ आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी खेद पूर्वक लिखते हैं कि क्या
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