________________
के लिए गृहस्थों के यहाँ नहीं जाने वाला ।।३३।। [उपदेश माला गाथा ३५५] कीवो न कुणइ लोयं, लज्जइ पडिमाइ जल्लमवणेइ ।
सोवाहणो य हिंडई, बंधइ कडिपट्टयमकज्जे ||३४|| __क्लीब (नपुंसक, असमर्थ, कायर) लोच नहीं करता, प्रतिमाअभिग्रह धारण करने में लजाता है, शरीर का मैल उतारता है, जूते पहिनता है और अकारण ही कटि पर वस्त्र बांधता है।।३४।। [उपदेश माला गाथा ३५६]
लोच नहीं करना, कायरता का परिणाम है, कष्ट सहन करने की रुचि नहीं है, सुखशीलियापन है । प्रतिमा धारण नहीं करना, आत्मार्थीपन की भावना वृद्धिंगत नहीं होने का सूचक है और मैल उतारना सुखशीलियापन तथा शरीर शोभा बढ़ाने की वृत्ति बतलाता है । जब शरीर का मैल उतारना भी चारित्र हीनता है, तो सोड़ा, साबुन, टीनोपाल आदि से वस्त्रों को अति उज्ज्वल एवं सुशोभित रखना चारित्राचार की निशानी कैसे हो सकती है ? पांवपोश पहनना कपड़े के मौजे पहनते-पहनते बाटा के बूट भी आ गये, यह भी सुखशीलियापन का विशेष प्रमाण है।
सोवइ य सव्वराई, नीसट्ठमचेयणो न वा झरइ । न पमज्जंतो पविसइ निसीहि, आवस्सियं न करे ||३५||
रात भर आराम से निश्चेष्ट जड़ की तरह सोता रहे, स्वाध्याय भी नहीं करे, उपाश्रय में प्रवेश करते प्रमार्जना भी नहीं करे और न आवश्यकी नैषेधिकी ही करे ।।३५।। [उपदेश माला गाथा
३५९]
20