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दुष्ट गच्छ जत्थ य गुणिप्पओसं, वहंति उम्मग्गदेसणारत्ता । सो य अगच्छो गच्छो, संजयकामीहिं मुत्तव्यो ||३९||
जिस गच्छ में, उन्मार्ग की देशना रुचि पूर्वक होती हो, जिसमें गुणीजनों के प्रति द्वेष फैलाया जाता हो, वह गच्छ, दुष्ट गच्छ है, कुगच्छ है और संयमी आत्माओं के लिए त्यागने योग्य है ।।३९।।
उन्मार्ग देशना तो वह पाप है, जो व्यक्ति को कृतघ्न, आश्रय-स्थल को नष्ट करने वाला, दर्शन एवं चारित्र विघातक बनाने वाला है । उन्माणु देशना करने वाले, उस दुराचारिणी स्त्री जैसे हैं, जो पत्नी तो अपने पति की कहलाती है, किन्तु प्रीति पराये से करती है और पराये के जाहिर में गुणगान करती है । जैसे दर्शन-भेदिनी एवं चारित्र-भेदिनी देशना देने वाला एक भी व्यक्ति किसी गच्छ में हो और उस गच्छ के नेता उसके कुप्रचार के प्रति अनुशासन की कारवाई नहीं करते हों, तो वह गच्छ भी सुगच्छ नहीं है।
इसी प्रकार जिस गच्छ में गुणीजनों-संयमनिष्ठ साधु साध्वियों एवं श्रावक श्राविकाओं की निन्दा की जाकर द्वेष फैलाया जाता हो
और ऐसे उद्दण्ड व्यक्तियों पर किसी भी प्रकार का अंकुश नहीं हो, तो वह गच्छ, समूह, संघ अथवा समूदाय सब नाम मात्र का ही है । वास्तव में वह सुगच्छ नहीं, कुगच्छ है-दुष्ट गच्छ है। वह जिनाज्ञा का आराधक नहीं, विराधक होता है । संयमप्रिय जिनाज्ञापालक, भाव संयत के लिए ऐसा गच्छ त्यागने लायक है ।
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