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दासी ने अपने प्रेमी को भी मदिरा पान कराना चाहा। उसके स्वीकार नहीं करने पर उसने गुप्त रूप से मदिरा पिलाई। होते होते वह नशाबाज हो गया और मांसभक्षी भी। उसका यह कुकृत्य प्रकट हो गया और पिता ने उसे घर से निकाल दिया। वह गांव के बाहर एक झोंपड़ी में रहने लगा और चाण्डालों के साथ फिरने लगा । भाइयों में परस्पर स्नेह अधिक था । दूसरा भाई चुपके से उससे मिलने आता और कुछ न कुछ दे जाता। जब पिता ने यह हकीकत जानी, तो उसे भी घर से निकाल दिया। तीसरा भाई भी अपने भाई को मिलने जाता । वह साथ बैठता तो नहीं, किन्तु झोंपड़े से दूर खड़ा रह कर कुशल समाचार पूछ लेता और कुछ दे आता । पिता ने उसे भी घर से निकाल दिया । चौथा भाई स्वयं नहीं जाता, किन्तु दूसरों के द्वारा संदेश भेजता, मंगवाता और आर्थिक सहायता भी करता । पिता ने उसे भी पतित से सम्बन्ध रखने के कारण पृथक् कर दिया। पाँचवाँ पुत्र, पिता का पूरा आज्ञाकारी था । उसने वैसा कुछ भी नहीं किया । पिता ने उसे अपनी सारी सम्पत्ति का स्वामी बना दिया । ___ इस दृष्टान्त में चाण्डालों के समान पार्श्वस्थादि हैं। पिता के समान आचार्य हैं और शकुनिपारक शिष्यों के समान साधु हैं । चाण्डालिनी-दासी तथा चाण्डालों के संसर्ग से पतित बने हुए प्रथम भाई के समान स्वयं पार्श्वस्थ हैं । दूसरे तीन भाइयों के समान पार्श्वस्थ से न्यूनाधिक सम्बन्ध रखने वाले हैं । विशेष सम्बन्ध रखने वाला भी त्याज्य हैं और कम तथा दूर का सम्बन्ध रखने वाला भी त्याज्य है । क्योंकि ये भी पवित्र मर्यादा
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