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[ २४ ]
श्रीमद्ने श्री लल्लुजी स्वामीको बताया, "जो कोई मुमुक्षुभाई तथा बहिनें आपसे आत्मार्थ साधन माँगे उन्हें इस प्रकार आत्महितके साधन बतायें
१. सात व्यसनके त्यागका नियम करावें ।
२. हरी वनस्पतिका त्याग करावें ।
३. कंदमूलका त्याग करावें ।
४. अभक्ष्य पदार्थोंका त्याग करावें ।
५. रात्रिभोजनका त्याग करावें ।
६. पाँच माला फेरनेका नियम करावें ।
७. स्मरण - मंत्र बतावें ।
८. क्षमापनाका पाठ और बीस दोहेका पठन, मनन नित्य करनेको कहें ।
९. सत्समागम और सत्शास्त्र सेवनके लिए कहें ।"
श्रीमद् द्वारा लिखित आभ्यन्तर संस्मरणपोथीमेंसे अमुक भाग जो श्री लल्लुजीके लिए लाभदायक था, उसकी प्रतिलिपि करनेके लिये श्रीमद्ने वह पोथी श्री लल्लुजीको एक दिन दी । उस भागकी प्रतिलिपि करनेके अतिरिक्त, पढ़नेपर अन्य जो आकर्षक लगा उसकी भी प्रतिलिपि अलग कागज पर कर ली और प्रातः दर्शनके लिए जाऊँगा तब उनसे आज्ञा ले लूँगा, ऐसा सोचा; क्योंकि रातको मुनिके लिए बाहर जाना मना है । प्रातः श्रीमदूके पास जाकर उनकी आज्ञानुसार उतारी गयी और अधिक उतारी गयी प्रतिलिपिके कागज उनके समक्ष रखकर श्री लल्लुजीने कहा, “रात हो गयी थी इसलिये आज्ञा लेने नहीं आ सका । और महीना भी पूरा हो रहा था, फिर समय नहीं मिलेगा जानकर बिना आज्ञाके भी पोथीमेंसे कुछ टिप्पण उतार लिये हैं ।"
यह सुनकर श्रीमद्ने सारे पन्ने और टिप्पणपोथी अपने पास रख लिये । उन्हें कुछ नहीं दिया । इससे उन्हें बहुत पछतावा हुआ और श्री अंबालालभाईको यह बात कही । उन्होंने भी श्री लल्लुजीको आज्ञाके बिना प्रतिलिपि करनेके लिये उलाहना दिया। अब श्री अंबालाल भाईके द्वारा, आज्ञासे की गयी प्रतिलिपिके पन्ने वापस लौटानेकी श्रीमद्से विनती की । श्रीमद्ने थोड़े पन्ने श्री अंबालालको दिये और अच्छे अक्षरोंमें लिखकर श्री लल्लुजीको देने को कहा । तदनुसार उन्होंने लिखकर दे दिये । उसमें
ज्ञी थी, तथा कुछ अन्य टिप्पण भी सम्मिलित । श्रीमद्ने उसका ध्यान करनेके लिए श्री लल्लुजीको आज्ञा दी । अत्यंत तीव्र पिपासाके बाद प्राप्त इस साधनसे श्री लल्लुजीको परम शांति प्राप्त
अंतिम दिन एकांतमें श्रीमद्जीने श्री लल्लुजीको एक घण्टे तक उपदेश दिया और दृष्टिराग बदलकर आत्मदृष्टि करवायी । जब श्री लल्लुजीको वह आशय समझमें आ गया तब श्रीमद्जीने बोलना बंद कर दिया ।
वसोमें एक माह पूरा हुआ तब श्रीमद्ने श्री लल्लुजीसे कहा, “क्यों मुनि, आपकी माँग पूर्ण हुई न? आपकी माँगके अनुसार पूरा एक माह यहाँ रहे।" श्री लल्लुजीको मनमें लगा कि विशेष माँग की होती तो अच्छा रहता । फिर सर्व मुनियोंको जागृतिका उपदेश देते हुए श्रीमद्ने कहा, "हे
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