Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
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वंदन -अभिनंदन !
धरा पर भी आपश्री ने विचरण किया है वहाँ यथा नाम । आप हमारी भुजा हैं।
तथा गुणसंपन्न व्यक्तित्व की सुरभि प्रवाहित हुई है। श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री पण्डित मुनि श्रीसुमनकुमार १५ वर्ष की अल्पायु में दीक्षा लेकर पंजाब प्रदेश में जी.म.सा. श्रमणसंघ के एक ज्योतिर्मान नक्षत्र हैं। आप | तत्कालीन युवाचार्य पंडितरत्न श्री शुक्लचंदजी म.सा. चिन्तनशील महामनीषी हैं, श्रमणसंघ को आप जैसे संतरलों पंडितरत्न श्री महेन्द्रकुमारजी म.सा. के पावन सान्निध्य में पर सात्विक गौरव है, आप द्वारा समय-समय पर जो | रहकर हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत इत्यादि अनेक भाषाओं का शासन की प्रभावना की जी रही है वह कालजयी है। । गहन अध्ययन करते हुए आगम साहित्य का भी विशेष आप उस गुरु के शिष्य हैं जिन्होंने श्रमण-संघ के
रूप से अध्ययन किया। आपकी अंतर रुचि का विषय लिए कितना बलिदान दिया, कितने-कितने कष्ट सहन
इतिहास रहा है। अतः जैनधर्म के इतिहास का भी आपने किये।....आप हमारी भुजा हैं....! .
सूक्ष्म, तत्त्वस्पर्शी एवं तुलनात्मक अध्ययन किया है।
आपका बाह्य व्यक्तित्व-गौरवर्ण, उन्नत भाल, विशालनेत्र आचार्य देवेन्द्रमुनि
एवं सुडौल देहयष्टि है। आप में आंतरिक व्यक्तित्व की
छटा, करूणाशीलता सहजता, स्पष्ट वक्ता, सहृदयता है। श्रमणसंस्कृति के
आप एक अनुभवी संत पुरुष हैं तथा साहित्यकार, | गौरवशाली संत
प्रवचनकार, प्रमुख विचारक, एक कुशल नीतिज्ञ होने के
साथ-साथ संघ के मार्गदर्शक भी रहे हैं। आपने आज परमश्रद्धेय श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्रीवर पूज्य श्री
तक पाँच श्रमण सम्मेलन में मुख्य रूप से सक्रिय भाग
लेकर श्रमणसंघ की समस्याओं का समाधान किया है। सुमनमुनिजी म.सा. की दीक्षा-स्वर्ण जयंति के पावन पुनीत
पूना में सन् १९८७ में संपन्न हुए श्रमण महासम्मेलन में अवसर पर हार्दिक श्रद्धार्पण-अभिनंदन स्वीकार करें।
आचार्यश्री ने आपश्री को निमंत्रित करते हुए 'शान्तिरक्षक' श्रमण संस्कृति का आधार है - श्रम, सम और दम ।
पद से सुशोभित किया था। उस श्रमण सम्मेलन में मैंने जो साधक अपने श्रम से मन एवं इंद्रियों का निग्रह करता हुआ समता की साधना करता है, वही श्रमण कहलाता
स्वयं देखा, अनुभव किया कि सत्य एवं न्याय के लिए
सदैव संघर्ष करते हुए आपने सत्य की विजयश्री दिलवाई है। वही सच्चा पुरुषार्थी है। उसका जीवन तप, त्याग, साधना की ज्योति से प्रकाशमान: स्वपर कल्याण करता
है। उस महासम्मेलन का सुचारु रूपेण संचालन आपकी हुआ संसार के सभी प्राणियों के लिए मंगलभावना भाता
कुशाग्र बुद्धि, समन्वय दृष्टि और महती योग्यता का स्पष्ट है। कमल की तरह संसार में रहता हुआ भी संसार से
उदाहरण है। तत्कालीन श्रमण संघीय विधान-संशोधन, ऊपर उठकर सभी को अपनी साधनामय जीवन की सुगंधि
प्रवर्तक एवं उपाचार्य-युवाचार्य पद के विवादास्पद न्याय प्रदान करता है। पूज्य श्री सुमनमुनिजी म.सा. श्रमण
पक्ष पर अडिग रहकर जो समाधान दिया वह सभी पर
अमिट छाप है। संस्कृति के गौरवशाली उज्ज्वल एवं ओजस्वी संतरत्न हैं। श्रमण संस्कृति, श्रमण-आचार एवं श्रमणव्यवहार का आपका जीवन नारियल की भाँति बाहर से कठोर त्रिवेणी संगम आपके जीवन में दृष्टिगोचर होता है। जिस | अंतर से निर्मल, निर्झरवत् है। धर्मशासन, संघनिष्ठा, आचार
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