Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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सिद्धान्तसारः
( १. ४
जैनों द्विसप्तति त्वातीतानागतवर्तिनीम् । तत्त्वार्थसंग्रहं वक्ष्ये दृष्ट्वागमपरम्पराम् ॥ ४ श्रीमतो जिननाथस्य वचोऽनन्तगुणं' यतः । कथं तत्र मतिं कुर्वन्न यास्याम्युपहास्यताम् ॥ ५ अथवा तत्र भक्तिमें यदि स्यात्सहकारिणी । तदा कार्यमिदं किञ्चित्सिद्धिं समधिगच्छति ॥ ६ अथ श्रीजिनसिद्धान्तभक्तिभारवशीकृतः । ततोऽहमपि मूढात्मा करिष्ये स्तुतिमात्मनः ॥ ७
वाले, श्रीके- अनन्तज्ञान, दर्शन, सुख तथा शक्तिरूप अनन्तचतुष्टयके धारक हैं वे जिन ऋषभादिक तीर्थकर आराधक भव्य ऐसे हम लोगोंका कल्याण करें ।। २ ।।
श्रीसे अनन्तचतुष्टयरूपी अन्तरंगलक्ष्मी और समवसरण, प्रातिहार्य आदि बहिरंग लक्ष्मीसे शोभनेवाले, द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा भावोंको संपूर्णतया जाननेवाले अर्थात् सर्वज्ञ, श्रीवर्धमान भगवान्का शासन - स्याद्वादमत उज्ज्वल सम्यग्दर्शनादिक गुणोंके धारक गणधरदेवोने जाना है अर्थात् द्वादशांगरूप द्रव्यश्रुतको उन्होंने अपने मनमें धारण किया है । प्रभुका यह शासन भव्योंको इष्टप्रिय है, अतएव यह नित्य वृद्धिंगत होवें ॥ ३ ॥
(तत्त्वसंग्रहकथन - प्रतिज्ञा ) भूतकालीन, भविष्यत्कालीन तथा वर्तमानकालीन ऐसे बहात्तर जिनेन्द्रोंको नमस्कार कर, तथा गौतमादि गणधरोंसे चली आई हुई आगम-परंपराको देखकर मैं 'तत्त्वार्थसंग्रह' नामक ग्रंथकी रचना करता हूँ। जिसका दूसरा नाम 'सिद्धान्तसंग्रह ' भी है ॥ ४ ॥
भावार्थ–गत उत्सर्पिणी - कालचक्र तृतीय आरेमें - दुषमसुषमामें निर्वाण, सागर आदिक चोबीस भूतकालीन तीर्थकर हो चुके हैं । तदनंतर इस अवसर्पिणी - कालचक्र के चतुर्थ आरेमें ऋषभादि वर्धमानान्त चोबीस तीर्थकर हुए । इस समय वीरजिनेशका शासन चल रहा है। आगामी उत्सर्पिणी कालचक्रके तृतीय आरेमें पद्मनाभादि अनन्तवीर्यतक चोबीस तीर्थकर होनेवाले हैं ॥ ४ ॥
अनन्तचतुष्टयसे विराजमान जिनेश्वरका वचन ( आगम) अनंत गुणोंसे भरा हुआ है। इस लिये उसमें अपनी बुद्धि प्रवृत्त करनेवाला मैं उपहासको क्यों नहीं प्राप्त होऊंगा ? अर्थात् गणधरादिकोंकेद्वारा निर्वाह्य आगमकी रचना करने में मैं प्रवृत्त हुआ हूं | इसलिये मेरा उपहास होगा तो भी मेरे अन्तःकरणमें जो आगमभक्ति वास करती है वह इस रचना में मुझे सहायक होगी, जिससे मेरा यह कार्यं कुछ सिद्ध होगा ।। ५-६ ॥
जिनेश्वरकथित सिद्धान्तोंमें मेरी उत्कट भक्ति होनेसे मैं मूढ होकरभी उनका कथन करूंगा । यह मैने अपनीही स्तुति की है ऐसा आप समझे || ७ ||
१ आ गुणा.
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