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सिद्धांत
रहस्य
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डानी परे बीडेली रहे छे. ए वे जातिना पक्षीओ, अढी द्वीपनी बाहेर छे. ए पांचे तियंच पंचेंद्रिय समूच्छिम अने गर्भज जाणवा. एवं वीश दंडक हवे एकवीशमो मनुष्य पंचेंद्रियनो दंडक कहे छे:-पन्नर कर्मभूमि, त्रीश अकर्मभूमि अने छपन्न अंतरद्वीप, एवं १०१ क्षेत्रना गर्भज मनुष्यना अपर्याप्ताने पर्याप्ता; एवं २०२ अने एकशोने एक क्षेत्रना संमूच्छिम मनुष्यना अपर्याप्ता. ए सर्व मलीने ३०३ भेद. ए एकवीशमो दंडक हवे बावीशमो व्यंतरनो दंडक कहे छे:-ते सोळ जातिना छे तेना नाम १ पिशाच, यावत् १६ कोहंडिक. ए बावीशमो दंडक. हवे त्रेवीसमो ज्योतिष्कनो दंडक कहे छे-चंद्रमा आदि पांच अढी द्वीपमां चर छे अने अने अढीद्वीपनी बाहेर स्थिर छे. बे चंद्र अने बे सूर्य, जंबूद्वीपमां छे. चार चंद्रने चार सूर्य, लवणसमुद्रमां छे. बार चंद्रने बार सूर्य, घातकीखंडद्वीपमां छे. बेंतालीश चंद्रने बैतालीश सूर्य, कालोदधि समुद्रमां छे, बउंतेर चंद्रने बउंतेर सूर्य, पुष्करार्द्धद्वीपमां छे. सर्व मली १३२ चंद्रने १३२ सूर्य, परिवार सहित चर छे. हवे परिवार कहे छेः -ज्यां एक चंद्रने एक सूर्य होय त्यां ८८ ग्रह, २८ नक्षत्र अने छासठहजार नवसें पंचोतेरको डाक्रोड तारा छे. एम सर्व चंद्र-सूर्यनो परिवार जाणवो. असंख्यात चंद्र अने सूर्य, परिवार सहित मनुष्य क्षेत्रथी बाहेर असंख्यात द्वीप- समुद्रमां स्थिर छे. ए २३मो दंडक हवे २४मो वैमानिकनो दंडक कहे छे. तेना २६ भेदः - १२ देवलोक, ९ ग्रैवेयक अने ५ अनुत्तरविमान सुधर्मादि बार देवलोक, भद्रादि नव ग्रैवेयक अने विजयादि पांच अनुत्तरविमान. ए २४ दंडक. अंब वपरायेल छे परंतु 'वाणव्यंतर' शब्द बरोबर जणातो नथी. २ बार देव लोक वगेरे
१ 'व्यंतर' शब्दने बदले 'वानमंत' शब्द शास्त्रमां देवोना नाम नवतश्वमां लखेला हे माटे अहिं लखेल नथी.
दंडक
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