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पणे उपनो, त्यां मनोवंच्छित १० प्रकारना कल्पवृक्ष संबंधी सुखो त्रण पल्य सुधी भोगव्या; ज्यां स्त्री-पुरुषनो: सिद्धांतक्षणमात्र वियोग पण पडे नहिं एम युगलिकपणे अनंतवार उपनो. वली कर्मभूमि मध्ये मनुष्यभवमां पुरुष
धर्मध्यान रहस्य
RI विचार वेदे चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव, अने मंडलिक राजा थयो अने स्त्रीवेदे स्त्रीरत्न आदि नारीणे उत्पन्न भयो, ॥१११॥
क्रोडपूर्वादिकना आयुष्यपर्यंत सुम्पविलग्या तो पण तृप्ति न थइ, एमज उत्तम धनिक शेठ-साहुकारने घरे ॥१११॥ ला अनंतवार नो. बली दुर्भागी अने दरिद्र कुलमा अतिशय दुःख भोगव्या. जलचरादि तिर्यच संशि पंचेंद्रिय
मध्ये अनेक र उपनो. गर्भज मनुष्य अने तिर्यंचमांत्रण वेद होय. सात नरक पांच एकेंद्रिय, त्रण विकलेंद्रिय अने अपंजी पंचंद्रियमा एक नपुंसकवेद होय. देवमां बे (स्त्रीपुरुष) वेद होय हवे ३ वेदनी स्थिति कहे छ
१ स्त्रीवेदनी स्थिति अंतर्नु ने उ. पृथपत्व कोड एवं अधिक ११० पल्योपमनी. पुरुषवेदनी ज० अंतमु० ने Nउ० पृथक्त्व मो सागरनी. नपुंसकवेदनी ज. अंतर्मुने उ० अनंतकाल चक्रनी. पुद्गल (परभाव )ना संयोगपी
एम विचित्र अवस्था धारण करी, ए सर्व अवस्था अशुद्ध व्यवहारनये जाणवी. शुद्ध व्यवहारमये शुद्ध देव, गुरु अने धर्मनी पथार्थ ओलग्वाण करी रखत्रयनु आराधन करवाथी, शुद्ध निश्चयनये जे आत्मानु स्वरूप, शक्तिरूपे छे ते व्यक्तिरूपे प्रगट थाय. कारण ? पुगल तो 'सडण पडण किदूसण स्वभाववाळो अने रूपी (मृत) छे. हं अविनाशी-अरूपी अमृत छु. कोइपण द्रव्य कोइ द्रव्यमां निश्चय नये मळे नाहिं, माटे 'एगोह' हुँ एकज छ; एम एकत्व भावनुं चिंतन करवू ते एकत्वानुप्रेक्षा. २ अणिचाणुप्पेहा कहेनां आत्मा द्रव्यार्थिकनये नित्य छे
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