Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah
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सिद्धांतरहस्य ॥२२६॥
समुद्घात स्वरुप ॥२२६॥
करीने पूर्वबद्ध तेजस नाम कर्मना पुदगलोने खरवे छे अने अन्य तैजस योग्य पुदगलोने लइने तेजो लेश्या मूके छे ते तैजस समुद्घात. ६ आहारक लब्धिवाला चौद पूर्वधरमुनि, तीर्थकरनी समृद्धि जोवा माटे अने कोइ सूक्ष्म अर्थनो संदेह निवारवा वगेरे खास हेतुथी आत्मप्रदेशो वडे स्वशरीर प्रमाणे जाडो-पहोळो अने संख्यात | योजननो लांबो दंड करीने पूर्वसंचित आहारक शरीर नाम कर्मना पुद्गलो बिखेरी अने नवीन आहारक शरीर योग्य पुद्गलोने ग्रहण करीने जे एक हस्त प्रमाण आहारक शरीर करे छे ते आहारक समुद्घात. ७ जे सर्वज्ञ | केवलीने आयुष्य कर्मथी वधारे वेदनीय नाम अने गोत्र कर्म होय ते केवलीसमुद्घात करे छे. प्रथम अंतर्मुहृर्तमां आवर्जीकरण (शुभयोगनो व्यापार ) करे ते सर्व केवलिओने अवश्य करवू पडे छे. त्यारपछी शेष अंतर्मुहूर्त आयुष्य बाकी रहे त्यारे केवली समुद्घात करे, तेनु क्रम अने स्वरूप कहे छे:-प्रथम समयमां केवलीप्रभु, आत्म प्रदेशो वडे स्वशरीर प्रमाणे जाडो-पहोळो अने लंबाइमां उंचे अने नीचे लोकना अंतने स्पर्श करे तेवो दंड अर्थात् चौद राजलोक प्रमाण करे. बीजे समये ते दंडनो पूर्व-पश्चिम लांबो कपाट करे. त्रीजे समये एमांथी प्रदेशोने विस्तारीने उत्तर-दक्षिणमा लांबा मंथान करे अने चोथे समये एना आंतरा पूरे. आ चोथा समयमां आत्मप्रदेशो वडे सर्व लोकमां व्याप्त थाय छे. कारण ? लोकाकाशना अने एक जीवना प्रदेशो समान
२ परने उपघात करवा रोषयुक्त तेजोलेश्या, तैजस शरीरथी मूके छे अने परने अनुग्रह करवा ( वीर प्रभुनी जेम) तैजस शरीरथी तैजसपु| द्गलोने ग्रहण करीने शीतलेश्या पण मूके छे.

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