Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

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Page 232
________________ सिद्धांत(हस्य (२२४॥ भोगवा योग्य कर्मपुद्गलोने तरतमां खपावी नाखे छे. अर्थात् कालांतरे वेदवा लायक कर्मपुद्गलोने उदीरणा करण वडे चीने- उदयमां लावी तेने भोगवीने खेरवी ( नाश करी ) नाखे छे. ते समुद्घातना सात भेद छे:१ वेदना समुद्घात, २ कषाय म०, ३ मरणांतिक स०, ४ वैक्रेय स०, ५ तैजस म०, ६ आहारक स० अने ७ केवलिसमुद्घात. पहेला छ समुद्घातो, छद्मस्थ जीवोने होय छे अने छेलो समुः मयोगी केवलीने होय छे. पहेला छ समुद्घातोनी एक एक अंतमु० नी स्थिति होय छे अने छेल्ला केवली स० नी आठ समयनी स्थिती होय छे, ते आ प्रमाणे:- १ वेदनाथी दुःखी थयेल जीव, अनंत कर्म परमाणुओथी वींटायल (आच्छादित ) एवा पोताना आत्मप्रदेशोने शरीरथी बाहेर काढीने खभा वगेरेना अंतराने तथा मुख वगेरेना पोकळ भागोने पूरीने लंबाई-पहोळाइथी शरीर प्रमाण क्षेत्रमां व्यापीने अंतर्मुहूर्त सुधी रहे ए अंतर्मुहूर्तमां बहु अशाता वेदनीय कर्मना घणा अंशो ( पुद्गलो ) ने खेरवी ( निर्झरी ) नाखे छे: ए वेदना समुद्घात. २ कषायथी व्याकूळ प्राणी आत्मप्रदेशो बडे पूर्ववत् मुखादि पोकळ भागोने पूरीने लांबा -पहोळा शरीर प्रमाण क्षेत्रमां व्यापीने कषाय मोहनीय कर्मना घणा अंशोने खेरवे छे अने खेरवते छते स्वहेतु वडे अन्य अनेक नवीन कर्म पुद्गलोने ग्रहण करे छे. एकषाय समुद्घात ते क्रोधादिक हेतुओ वडे चार प्रकारनो कट्टेल छे. ३ मरणांतथी दुखित भयेला २ क्रोध बडे क्रोध अने मान वडे मान, ए प्रमाणे कषायोथी कषाय- पुद्गलोने ग्रहण करवा वडे जो नवीन कर्मने ग्रहण न करे तो मुक्तिनो प्रसंग आवी जाय माटे नवीन कर्मने ग्रहण करे छे. समुद्घात स्वरुप ॥२२४॥

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