Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

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Page 239
________________ सिद्धांत स्वरुप ॥२३॥ क्त ज्ञान ते अर्थावधी आवलिकाना (ते नैश्चयि ३ अवाय अने ४ धारणा. ए चार चार भेद करतां २४ भेद अने ४ भेद व्यंजनावग्रहना; ए सर्व मली २८ भेद थाय छे. दीपक, जेम घटादिकने प्रगट करे छे तेम जे छता पदार्थोने प्रगट करे ते व्यंजन अथवा इंद्रिय साथे पांचज्ञान शब्दादिकना पुद्गलोर्नु जे सबंध थर्बु ते व्यंजन. आ व्यंजनावग्रहज्ञान, अत्यंत अस्फुट छे. घाणेंद्रियादि चार इंद्रियोमा श्रोत्रंद्रिय वडे शब्द, स्पर्श मात्रथीज संभळाय छे; गंध रस अने स्पर्श, ज्यारे बद्ध-स्पृष्ट थाय त्यारे ॥२३॥ ते घाणेंद्रियादिथी जणाय छे. चक्षु अने मन, अप्राप्यकारी होवाथी रुपादिक साथे बन्नेनो सबंध थतो नथी. | अर्थात् ए बन्नेनो व्यंजनावग्रह थतो नथी. श्रोत्रादि चार इंद्रियो प्राप्यकारी छे. स्पर्शनादि इंद्रियोनो व्यंजनावग्रह थया पछी 'आ कंइक वस्तु छे' ए जे अव्यक्त ज्ञान ते अर्थावग्रह. चक्षु अने मननो व्यंजनावग्रह थया सिवाय प्रथमधीज अर्थावग्रह थाय छे. व्यंजनावग्रहनो काल जघन्यथी आवलिकाना असंख्यातमा भाग प्रमाण अने उ० थी पृथक्त्व श्वासोश्वास प्रमाण छे. अर्थावग्रहनो एक समयनो काल छे. (ते नैश्चयिक अर्था| वग्रहनो जाणवो) अने व्यवहारिक अर्थावग्रहनो एक अंतर्मुहूर्त कालमान छे. जे अवग्रहित अर्थ तेना वर्ण, गंध अने रसादि धर्मनी विचारणा ते 'इहा' तेनो काल एक अंतर्मु० छे. ते पछी इहित अर्थन निर्णय करवू ते ' अपाय' तेनुं पण कालमान अंतर्मु. नु छे. त्यारपछी निर्णित अर्थने अमूक काल सुधी धारी राखे ते 'धारणा' तेनी स्थिति संख्याता तथा असंख्याताकालनी छे. जाति स्मरणज्ञान पण धारणानोज भेद छे. एवं २ धारणाना वासना, संस्कार अने स्मृति ए व्रण भेद थाय छे.

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