Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

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Page 244
________________ पांचज्ञान स्वरुप ॥२३६॥ सिद्धांत मार्गणा ते दशमुं प्रतिपंत्ति सश्रुत. जे मत्पद प्ररूपणादि द्वारोमांधी एक द्वारनुं वर्णन ते इग्यारमुं अनुयोगश्रत 13 अने एकथी वधारे द्वारनुं जे वर्णन ते बारमुं अनुयोग मश्रुत. जेम सूत्रमा उद्देशा छे तेम पूर्वनामाभृत प्राभृ॥२३६॥ तोमांथी एक प्राभृत प्रान्नु जे ज्ञान ते तेरभु प्राभृत प्रा. श्रुत अने अनेक प्राभृत प्राग्नु जे ज्ञान ते चौदमु प्रा० प्रा० समास श्रुत. अध्ययनोनी जेम पूर्वमा वस्तु-अंतर्वर्तीरुप प्राभृतो ( पाहुडा)मांथी एक प्राभृतर्नु जे ज्ञान ते |पंदरमु प्राभृतश्रुत अने अनेक प्राभृतनुं जे ज्ञान ते सोलमुं प्राभृत सश्रुत. श्रुत स्कंधनी जेम पूर्वमां वस्तुओ | ( अधिकार विशेष )मांथी एक वस्तुनुं जे ज्ञान ते सत्तर, वस्तुश्रुत अने अनेक वस्तुनुं जे ज्ञान ते अढारमुं वस्तु | सश्रुत. उत्पादादि १४ पूर्वमांथी एक पूर्वनु जे ज्ञान ते उगणीश, पूर्वश्रत अने अनेक पूर्वनुं जे ज्ञान ते वीशमुं पूर्व से. श्रुत. हवे अवधिज्ञानना छ भेद कहे छः-१ अनुगामी-जे नेत्रनी जेम माथे चाले ते. २ अननुगामी जे क्षेत्रे ज्ञान उत्पन्न थाय त्यांज जाणे पण माथे न चाले (एक स्थानमां स्थिर रहेल दीपकनी जेम) ते. ३ वर्धमान-जे उत्तरोत्तर वृद्धिने पामतुं ज्ञान ते. जघन्यथी उत्पन्न वेला एक अंगुलना असंख्यातमा भागे जाणे पछी वृद्धि पामतां असंख्याता लोकप्रमाण जाणे. ४ हीयमान-प्रथम शुभ अध्यवमायथी घणा प्रमाणमां जाणे पछी अशुभ अध्यवसायथी घटतुं जाय ते. ५ प्रतिपाती-जे संख्य असंख्य योजन अने संपूर्ण लोकने जाणीने पण १ प्रतिपत्तिओ प्रायः अत्यारे जीवाभिगमसूत्रमा देखाय छे. २ श्रुतना २० मेदनो विशेष स्वरुप कर्मग्रंथादि शास्त्री जाणवु. ३ प्रतिपाती | [ पडवाइ] अवधि ते एकदम जाय अने हीयमान ने क्रमशः घटे. प्रतिपाती अवधि, प्रमाथी अथवा भातरथी जाय.

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