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सिद्धांत
रहस्य
॥२३५॥
विशाल पूर्व, ९ कोड पदनुं छे. अने १४ लोकबिंदुसार पूर्व, १शा क्रोडं पदनुं छे. ए सर्व अंगप्रविष्ट श्रुत कहेवाय छे. चौदमुं अंगबाह्यश्रुत ते आवश्यक, दशवैकालिकादिक जाणवुं. प्रकारांतरे श्रुत ज्ञानना २० भेद पण थाय छे ते कहे छे:- १ पर्यायश्रुत, २ पर्याय समासश्रुत, ३ अक्षर०, ४ अक्षर समास०, ५ पद०, ६ पदसमास०, ७ संघात०, ८ संघात समाम०, ९ प्रतिपत्ति०, १० प्रतिपत्ति समास०, ११ अनुयोग, १२ अनुयोग समास०, १३ प्राभृत प्राभृत०, १४ प्राभृत प्रा० समास०, १५ प्राभृत०, १६ प्राभृत स०, १७ वस्तु०, १८ वस्तु स०, १९ पूर्वश्रुत, अने २० पूर्व सः श्रुत. हवे तेनुं स्वरुप कहे छे:- १ पर्याय श्रुत-लब्धि अपर्याप्त सूक्ष्म निगोदना जीवोनुं जे सर्वथी जघन्यश्रुत होय छे तेनाथी अन्य जीवोमां एक अविभाज्य अंश ( पर्याय ) नी जे वृद्धि ते पर्यायश्रुत अने तेवा बे ऋण आदि पर्यायनी जे वृद्धि ते बीजुं पर्याय समासश्रुत. अकारादि अक्षरोमांधी एक लब्धयक्षरनुं जे ज्ञान ते त्रीजुं अक्षरश्रुत अने तेवा वे त्रण वगेरे अक्षरनुं जे ज्ञान ते चोथुं अक्षर स०श्रुत. आचारंगादिना अढार हजार वगेरे पदोनी जे संख्या कहेल छे तेमांधी एक पदनुं जे ज्ञान ते पांचमुं पदश्रुत अने बे ऋण वगेरे घणा पदोनुं जे ज्ञान ते छहुं पद स०श्रुत गति आदिक बाशठ मार्गणामांशी एक मार्गणानुं जे ज्ञान ते सातमुं संघातश्रुत अने विशेष मार्गणानुं जे ज्ञान ते आठमुं संघात स० श्रुत. संपूर्ण गति आदिक द्वारामांधी एक द्वारमां जे जीवादि वगेरेनी मार्गणा ( विचारणा ) ते नवमुं प्रतिपत्तिश्रुत अने बे त्रण द्वारोने विषे जे २ चौद पूर्वना पदनुं प्रमाण नंदी सूत्रनी टीकाना अनुसारे लखेक के अंधातरमां मतांतर छे.
पांचज्ञाननुं
स्वरूप ॥२३५॥