Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

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Page 246
________________ पांचज्ञान सिद्धांतरहस्य ॥२३८॥ स्वरुप |॥२३८॥ द्रव्यतः सर्व द्रव्योने जाणे पण देखे नहि. क्षेत्रतः आदेशथी सर्वक्षत्र-लोकालोकने जाणे पण देखे नहि. कालतः आधी सर्व कालने जाणे पण देखे नहि. अने भावतः आ०थी सर्व भावने जाणे पण देखे नहि. अथवा आदेश एटले श्रुत, ते श्रुत जेने प्राप्त थयेलं होय तेने अक्षरनी परिपाटी विना पण मतिज्ञान श्रुतानुसारे प्रसरे छे. द्रव्यतः श्रुतज्ञानी ( दश पूर्वी वगेरे ) केवल अभिलाप्य द्रव्योने उपयोगथी जाणी शके छे अने देखे छे. ते सिवायना श्रुतज्ञानीना सबंधमां भजना जाणवी. क्षेत्र, काल अने भावथी पण एमज जाणवू. कारण ? श्रुत केवलीने केवलज्ञानी समान, सिद्धांतमां कहेल छ. अवधिज्ञानी द्रव्यतःजघन्यथी रूपी (मूर्त) द्रव्योने जुवे छे.ते तैजस अने भाषा द्रव्यना मध्यमां रहेल द्रव्योने जुवे छे अने उ०थी सूक्ष्म अने बादर सर्व रूपी-द्रव्योने विशेषाकारथी जुवे छे. क्षेत्रतः ज. अंगुलना असंख्यातमा भाग प्रमाण क्षेत्रने जुवे छे अने उ. असंख्याता लोकाकाश | प्रमाण जोइ शके छ. कालतः ज. एक आवलिकानो असंख्यातमो भाग अने उ० असंख्याता कालचक्र भूत भविष्यने जुवे छे. भावतः ज. अनंत द्रव्योना अनंत पर्यायोने जाणे छ, परंतु प्रत्येक द्रव्यना पटला पर्यायो २ पन्नत्रणा सूत्रमा त ज्ञानमां देखवापणु कहेल छे. कारण ? अवेयक अने अनुत्तरविमान आदिना चित्रो पण सूत्रज्ञानी आलेखी शके छे. ते देखवा सिवाय का घटी शक! माटे श्रुतज्ञानी देखे है एम कहेलं छे ते विशेष स्फुट जाणे छ; अर्थात् एमने तद्दन साक्षात्कार Vाजे जणाय है. म समजाय छ. वस्तुतः ते परोक्षज्ञान छ.३ " जावइ तिसमयाहारगस्स सहमस्स पणग जीवस्त ओगाहणा जहमा ओहिसितं जहमतु" इति नंदी-वृत्ती. 5452-%%%%849

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