Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

View full book text
Previous | Next

Page 240
________________ सिद्धांत स्वरुप ॥२३२॥ मतिज्ञानना २८ भेद थया. वली एकेकना यार भेद पण कहेल छे. ते आ प्रमाणेः-१ बहु, २ अबहु, ३ बहुविध, ४|४ अबहुविध, ५ क्षिप्र, ६ अक्षिप्र, ७ निश्रित, ८ अनिश्रित, ९संदिग्ध, १० असंदिग्ध, ११ ध्रुव अने १२ पांचज्ञान अध्रुव. आ बार भेदथी २८ ने गुणतां ३३६ भेद, श्रुत निश्रित मतिना थाय छे अने अश्रुत निश्रित मतिना चार | भेद ते १ औत्पातिकी, २ वैनयिकी, ३ कार्मिकी अने ४ पारिणामिकी ए चार प्रकारनी बुद्धि भेळवतां सर्व ३४० ॥२३२॥ | भेद पण मति ज्ञानना थाय छे. हवे श्रुतज्ञानना १४ भेद कहे छः-१ अक्षरश्रुत, २ अनक्षरश्रुत, ३ संज्ञिश्रुत, ४ असंज्ञीश्रुत, ५ सम्यकश्रुत, ६ असम्यक् (मिथ्या) श्रुत, ७ सादिश्रुत, ८ अनादिश्रुत, ९ सपर्यवसितश्रुत, १. अपर्यवसितश्रुत, ११ गमिक श्रुत, १२ अगमिक श्रुत, १३ अंगप्रविष्ट अने १४ अंगबाह्यश्रुत. हवे प्रथम अक्षर | श्रुतना त्रण भेद १ संज्ञाक्षर, २ व्यंजनाक्षर अने ३ लब्ध्यक्षर. तेमा १ संज्ञाक्षर ते ब्राह्मीआदि अढार लीपीरुप अढार प्रकारचं छे. २ व्यंजनाक्षर ते 'अ' कारथी मांडी 'ह'कार पर्यंत अक्षर-उच्चाररुप छे. एबे प्रकारो यद्यपि ज्ञानात्मक नथी तथापि श्रुतना कारणरुप होवाथी उपचार बडे ए बन्नेने श्रुतज्ञान कहेलं छे. ३ लब्ध्यक्षर ते शब्द-श्रवण तथा रूप दर्शनादिथकी अर्थ-परिज्ञान गर्भित जे अक्षरनी उपलब्धि (साक्षात्कार थर्बु ) ते लब्ध्यक्षर जाणवू. आ त्रण प्रकारना अक्षरो वडे वाणीगम्य पदार्थोंने प्रतिपादन करनाऊं जे ज्ञान ते अक्षरश्रुत. बाकीनुं ज्ञान ते-श्वास लेवा-मकवाथी खांसी खावाथी थुकवाथी हुंकारो (खोखारो) करवाथी चपटी वगाडवा वगेरेथी जे ज्ञान थाय छे ते बीजु अनक्षरश्रुत कहेवाय छे. त्रीजु संज्ञिश्रुत, ते संज्ञाना ३ प्रकार छः-१ दीर्घ

Loading...

Page Navigation
1 ... 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248