Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

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Page 231
________________ सिद्धांत रहस्य ॥२२३॥ | कनो ज० भवसंवेधकाल, दश हजार वर्ष अधिक एक क्रोड पूर्वनो होय छे. ज० आयुष्यवाला मनुष्य अने उ० आयुष्य० नारकनो उ० भव सं० काल, चार सागर अने चार पृथक्त्व मासनो छे अने तेनो ज० भवसंवे० का० एक सागर अने पृ० मासनो होय. ज० आयुष्यवाला ते बन्नेनो उ० भव संवेधकाल, चालीश ह० वर्ष अने चार पृथ० मासनो अने तेओनो ज० भवसंवे०, दश ह० वर्ष अने पृथ० मासनो छे. ज० आयुष्य वडे सानमी नरकमां उप्तन्न थतां उ० आयुष्यवाला तिर्यचनो उ० भवसंवेधकाल, चार क्रोड वर्ष अधिक छासठ सागरनो अने ज० आयुष्यवाला तिर्यचनो भवसं० काल, छासठ सागर अने चार अंतर्मु०नो होय. उ० आयुष्य बडे सातभी नरकमां उत्पन्न थतां उ० आयुष्यवाला मनुष्यनो भव० सं० काल, तंत्रीश सागर अने क्रोड पूर्व अधिक होय. जघन्य अने उ० थी पण तेटलोज काल धाय कारण ? सातमी नरकथी पुनः मनुष्यभवनी प्राप्ति थती नथी. ज० आयुष्ये सातमी नरकमां उत्पन्न थतां ज० आयुष्यवाला मनुष्यनो भवंस० काल, यावीश सागर अने प्रथ० वर्षनो छे. ए प्रमणे सर्व भांगाने विषे सघळा प्राणिओनो उ० के ज० भवसं० काल स्वयं समजी लेबुं. विशेष जिज्ञासुए भगवती - शतक २४ मुं जोवुं. इति भवसंवेध समाप्त. अथ समुद्घात - स्वरुप - सम् उत् अने घात, ए त्रण शब्द मळीने समुद्घात शब्द धयेल छे तेनो समु दायार्थ आ प्रमाणे थाय छे: - एकी भावे ( समस्त पणे ) आत्म वीर्यनी प्रबलताथी वेदनादिवडे भोगवाइने कमांशो ( कर्म परमाणुओ )नो जे नाश ते समुद्घात कहेवाय छे. समुद्घात करनार जीव, घणा काल सुधी भव-संबेध विचार ॥२२३॥

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