Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah
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॥२२१॥ भव-संवेध विचार
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| स्थावरो अने विकलेंद्रियोनो ज. थी बे भव संवेध जाणवो. युगलिक सिवायना मनुष्यो अने संज्ञी-असंज्ञी सिद्धांत
दतियचो, परस्पर उ० थी चारे भांगे आठ भव करे. वली तेओ, पृथवी आदि पांच स्थावर कायमां अने त्रण
विकलेंद्रियमां पण चारे भांगे उ० थी आठ भव करे अने ज. वे भव करे, संज्ञी-असंज्ञी (युगलीक सिवायना) १२२१॥ | मनुष्यो, वायुका० अने तेउका मां उत्पन्न थइने ज• ने उ० थी बे भव करे; कारण ? तेउ०-वायुकायची नीक
ळेलाने मनुष्य-गति प्राप्त थती नथी. हवे उक्त भवसंवेधोनुं कालमान निश्चित करवा माटे नीचे प्रमाणे आम्नाय छेः-जघन्य अंतर्मुहर्त अने उत्कृष्ट पूर्वक्रोडनी स्थितिवाला तिर्यंचो, सर्व नरकोमा जाय छे अने नारको पण तेटलीज स्थितिवाला तिर्यंचोमां उत्पन्न थाय छे. ज. अंतर्मु० अने उ. क्रोड पूर्वनी स्थितिवाला तिर्यचो. भवनपतिथी मांडी यावत् सहस्रार देवलोक पर्यंत जाय छे अने सहस्रार सुधीना देवो पण तेटलीज स्थितिवाला तियचोमां उपजे छे. असंख्याता (वर्ष) आयुष्यवाला तिर्यचो, इशान देव. सुधी उपजे छे, ते पण पोताना समान आयुष्यवाला अगर तेथी न्युन आयुष्यवाला देवो थाय छे. पृथक्त्व मासना आयुष्यवालो मनुष्य, | पहेली नरक सुधी जाय छेपृ० वर्षना आयुष्यवालो मनुष्य, शर्करादि छ नरक सुधी जाय छे अने क्रोड पूर्व सुधीना आयुष्यवालो मनुष्य, साते नरकमां जाय छे. रत्नप्रभाना नारको, ज० थी पृथक्त्व मासना आयुष्यवाला मनुष्यो थाय छे. बीजीथी छट्ठी नरकना नारको, ज० थी पृथ० वर्षवाला मनुष्यो थाय छे. सातमी नरकना
२ पृथक्त्व वर्षथी न्यून आयुष्यवालो जीव, शर्कराप्रभादि नरकमा जतो नश्री.
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