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समुद्घात
स्वरूप ॥२२५॥
४जीवन ज्यारे आयुष्य अंतर्मुहूर्त बकात रयु होय त्यारे ते जीव, आत्मप्रदेशो वडे पूर्ववत् मुखादिकना छिद्रोने सिद्धांत
पूरीने जाडाइ-पहोलाइमां पोताना शरीर प्रमाणे अने लंबाइमां जघन्यतः अंगुलना असंख्यातमा भाग जेटलो रहस्य
| अने उत्कृष्टतः एक दिशामां छेक उत्पत्तिस्थान सुधी असंख्यात योजन प्रमाण क्षेत्रमा व्यापीने अंतर्मु०मा मृत्यु ॥२२५॥
| पामे छे. ए जीव घणा आयुष्य कर्मना पुद्गलोने खेरवी नाखे छे; पण नवीन आयुष्यकर्म-पुद्गलोने ग्रहण करतो नथी. अहिं एटली विशेषता छे के कोइक जीव, एकज मरणांतिक समुद्घात करीने नरकादिकमां उत्पन्न थाय छे; त्यां आहार ले छे अने शरीर पण बांधे छे. वली कोइक जीव, म. समुद्घात करीने उत्पत्ति स्थाने जइने | समुद्घातथी निवृत्त थइ पाछो स्वशरीरमां आवी पुनः समुद्घात करी उत्पत्ति स्थानमां उपजे छे. ४ वैक्रेय समुद्घातने प्राप्त थयेलो वैक्रेय शक्तिवालो जीव, कर्मथी वींटायला आत्मप्रदेशोने शरीरथी बाहेर काढीने जाडाइपहोळाइमां स्वशरीर प्रमाणे अने लंबाइमां संख्यात योजन प्रमाण दंड बनावीने पछी पूर्वोपार्जित वैक्रेय शरीर नाम कर्मना पुद्गलोने खेरवतो अने वैक्रेय शरीरने योग्य अन्य पुद्गल-स्कंधोने लइने समुद्घात करे छे ते वैकेय समुद्घात. ५ तेजस समुदने प्राप्त थयेलो तेजोलेश्या नामनी शक्तिवालो जीव, वैकेय शनी जेम कर्मोथी वींटायेला आत्म प्रदेशोने बाहेर काढीने स्वशरीर प्रमाणे जाडो-पहोलो अने संख्यात योजन प्रमाण लांबो दंड
SHRRENA
२ आ हकीकत भगवती सूत्रना छठा शतकना छछा उद्देशामां कहेल छे, ते नरकादिथी मांडी यावत् अनुत्तर विमान सुधी सर्व स्थानोमां | पण एम समजवू.