Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

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Page 164
________________ सिद्धांत रहस्य ॥१५६॥ हवे बहिरादि ३ आत्मानुं स्वरुप कहे छः-१ बहिरात्मा, २ अंतरात्मा अने ३ परमात्मा. बहिरात्मानुं स्वरुपकहे छ जे जीव तन, धन, स्वजन, कर्म प्रमुख सर्व पुद्गलिक परवस्तुने पोतानी माने वळीवहिरादि३ शरीरादिक ते हुं अने स्वजनादिक ते मारा एवी परिणतिए वर्ते, ते बहिरात्मा कहेवाय. दोहरो-पुद्गलशु रातो आत्मानुं रहे, जाणे एह निधान; तस लाभे लोभ्यो रहे, बहिरातम अभिधान ॥१॥ बहिरात्मा, प्रथमगुणस्थानथी यावत् वरुपकहेछ त्रीजा गुणठाणा सुधी होय. अंतरात्मानुं स्वरुपः-दोहरो-पुद्गल खलसंगी परे, सेवे अवसर देख; तनु अशक्तज्यु ॥१५६॥ |लकडी, ज्ञान भेद पद लेख ॥१॥ जे जीव, पुद्गलना सबंधने दुर्जनना संग जेवो माने, पण न छूटके पुद्गलनो संग करे ते पण साक्षी मात्र रहे तेमां आसक्त न थाय. जेम अशक्त माणस, लाचारीथी लाकडी राखे पण मनमां शरमाय. जो हुं सशक्त था तो लाकडीने छोडी दउं, एम सम्यक् ज्ञान वडे विचारीने आत्मा अने पुद्गलने सर्वथा जूदा जाणे, अंतरंग उदासीन परिणमी होय. पापकर्म करतां बहु भय राखे अने स्व आत्माने परमास्मा समान जाणी तेने प्रगट करवानी रुचिवाळो ते अंतरात्मा कहेवाय. ते चोथा गुणस्थानथी बारमा गुणठाणा सुधी होय. परमात्मानु स्वरुपः-दोहरो प्यारो आप स्वरुप में, न्यारो पुद्गल खेल; सो परमात्मा जानीए, नहि जस भवको मेल ॥१॥ आत्मस्वरुपमा मग्न-ज्ञान दर्शनभां अखंड उपयोग होय-अने पुद्गलना प्रपंचथी भिन्न रही घनघाती कर्ममलने दूर करीने अघाती कर्मने दूर करनार ते परमात्मा कहेवाय. ते तेरमा-चौदमा गुणठाणे अने सिद्धां होय. हवे जीवन स्वरुप, अनेक लक्षणोथी कहे छे:-वोहरो-समता रमता उर्खेता, ज्ञायकता सुख

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