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सिद्धांत
रहस्य ॥१७८॥
यथी जे कुत्सित (दोषसहित) चारित्रवालो होय अथवा ज्ञानादिक वडे आजीविका करनार होय. निग्रंथ (मोह
नियंठा नीय कर्मनी गांठथी छुटेलो) तेना बे भेद-१ उपशांत मोह अने २ क्षीण मोह. तेना वली पांच प्रकार-१ प्रथम विचार समय निग्रंथ, २ अप्रथम समयनि०, ३ चरम समयनि०,४ अचरम समयनि० अने ५ यथा सूक्ष्म निग्रंथ. इग्या
॥१७८॥ | रमा के बारमा गुणठाणाना प्रथम समयमा जे वर्ततो होय ते प्रथम स०नि०, पहेला समय सिवायना शेष | समयमा जे वर्ततो होय ते अप्रथम स०नि०, जे छल्ला समयमां वर्ततो होय ते चरम स०नि०, छेल्ला सिवाय||
शेष समयमा जे वर्ततो होय ते अचरम स०नि० अने जे समयादिकनी विवक्षा रहित ते यथा सूक्ष्म निग्रंथं. स्नातक (जे घाती कर्मरुप मलने प्रक्षालवाथी स्नान करनारनी जेम शुद्ध थयेल तेना पांच भेद
१ अशरीरी, २ अशबल (ते निरतिचार चारित्री), ३ अकाश (ते घातीकर्म रहित ), ४ संशुद्ध ( ते ४ अप्रतिहत ज्ञान-दर्शन धारक अरिहंत-जिनकेवली), ५ अपरिश्रावी (कर्मबंध रहित ). ए पांच भेद, अवस्था
१ आ पांच भेदो, सूक्ष्म ऋजुसूत्र-स्थूल ऋजुसूत्र अने व्यवहार नय ए व्रण नयनी अपेक्षाए करेल छे. २ निर्गथा अने तेना उत्तर मेदमा जे तफाबत छे तेनो खुलाशो-मूल निग्रंथ, क्षयोपशम भावे मोहनी गांठथी नीकरेलो छ माटे निग्रंथ अने तेना उत्तर भेदरुप निग्रंथ ते उपशम भावे अने क्षायक भावे मोहनी गांठथी नीकरेला छे. ३ तेरमा अने चौदमा गुणठाणे वर्तनार आस्मानी अवस्थाना भेदने लइने आ पांच भेद स्नातकना कहेल . 'अशरीरी' शब्दथी 'सिद्ध' समजवा नहि. कारण? स्नातकनी स्थिति जे देशे उणीक्रोड पूर्वनी कहीछे ते तेरमा गु० आश्रयी छे. जो सिद्ध गण्या होततो सादि-अनंत स्थिति कहेत. अशरीरी कहेबानो हेतु ए डे केः-चौदमा गु० ना छेल्ला समये अशरीरी छे. कारण ? शरीर