Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

View full book text
Previous | Next

Page 199
________________ सिद्धांत- रहस्य ॥१९॥ काशिनि विचार ॥१९॥ अने मनुष्यणीनी कायस्थिति, तियचणी प्रमाणे जाणवी. देवनी नारकनी जेम जाणवी. देवीनी ज० दश हजार वर्ष अने उ०५५ पल्यनी. सिद्धनी सादि-अनंत कालनी. नारक, अपर्याप्तपणे रहे तो ज०-उ० अंतर्मु० रहे: एम यावत् अपर्याप्त देवी सुधी पण एमज जाणवी. नारक, पर्याप्तपणे रहे तो ज० अंतर्मु० न्यून दश हजार वर्ष अने उ० अंतर्मु न्यून ३३ सागर रहे. तियच पर्याप्त, ज. अंतर्मु. अने उ० अंतर्मु. न्यून ३ पल्य रहे. तिर्यचणी, मनुष्य अने मनुष्यणी एत्रण पर्याप्तनी स्थिति, तियचपर्याप्तनी परे जाणवी. देव पर्याप्तनी नारक पर्या सनी माफक जाणवी अने देवी पर्याप्तनी ज० अंतर्मु. न्यून दश ह० वर्षनी अने उ० अंतर्मु० न्यून ५५ पल्यनी. |३ सेंद्रिय (इंद्रिय सहित ) जीव बे प्रकारना छे १ अनादि-अनंत ते अभव्य जीवनी अपेक्षाए. अने २ अनादिसांत ते भव्य जीवनी अपेक्षाए. एकेंद्रियनी कायस्थिति, ज. अंतर्मु० अने उ० असंख्यपुदगल परावर्तनी. त्रण विकलेंद्रियनी ज. अंतर्मु. अने उ संख्याता वर्षसहस्रनी. पंचेंद्रियनी ज. अंतर्मु० अने उ० हजार सागरोपम झाझेरी. अनिंदियनी सादि-अनंत कालनी स्थिति. सेंद्रिय अपर्याप्तनी स्थिति, ज०-उ० अंतर्मुहर्त; एम यावत् अपर्याप्त पंचेंद्रिय लगे जाणवी. सेंद्रिय पर्याप्तनी स्थिति, ज. अंतर्मु० अने उ. शंत पृथक्त्व सागरोपम २ अहिं लब्धिरुप भावद्रिय समजवी अन्यथा उक्त स्थिति संभवी शके नहि. 'लब्धि' इंद्रिय, विग्रह गतिमाय होय अने इंद्रिय पर्याप्तने पण होय छे. ३ उत्कृष्ट शतपृथक्त्व (९००) सागरनी जे स्थिति कहेल छे ते लब्धि पर्याप्तनी अपेक्षाए जाणवी. कारण अपर्याप्त काले जो के पर्याप्ति पूरण करेल नथी पण पूरण कर्या बिना मरण न पामे ते 'लब्धि पर्याप्त' कहेवाय अने पर्याप्ति पुरी कर्या वगर मरे ते 'लब्धि अपर्याप्त' कहेवाय अहिं कब्धिपर्याप्तनी विवक्षा छे.

Loading...

Page Navigation
1 ... 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248