Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

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Page 207
________________ सिद्धांतरहस्य १९९॥ छे. अद्धा समय पण प्रवाहनी अपेक्षाए अनादि अनंत छे. चरम (जेनो छेल्लो भव थवानो होय ते )नी स्थितिअनादि-सांत. अचरमना वे भेदः-१ अनादि अनंत ( ते अभव्य जीव आश्रयी ) अने २ सादि अनंत ( ते सिद्ध आश्रयी ) इति कायस्थिति ( अष्टादशम प्रज्ञापना पद ) समाप्त. अथ चक्रवर्त्ति चतुर्दशद्वार वर्णन - १ भरतचक्री, २ वनितामां उपना, ३ ऋषभदेवजी पिता, ४ मं गला माता, ५ चोर्याशी लाख पूर्वनुं आयुष्य, ६ पांचसें धनुष्यनुं देहमान, ७ सत्तोतेर लाख पूर्वलगें कुंवरपणे रह्या, ८ एक हजार वर्ष लगें मंडलिकपणे रह्या, ९ साठ हजार वर्ष लगें देश साधना करी, १० एक हजार वर्ष ज्युन छ लाख पूर्व लगें चक्रवर्त्ति पदवी भोगवी, ११ सुभद्राराणी स्त्री रत्न, १२ आरीसा भुवनमां केवल पाम्या पछी एक लाख पूर्व प्रव्रज्या पाली, १३ मुक्तं गया, १४ ऋषभदेवजीना वारामां थया. ॥ बीजा सगर चक्री १ अयोध्यानगरीमा उ०, २ सुमित्र राजा पिता, ३ यशोमती माता, ४ बहुतेर लाख पूर्वनुं आयुष्य, ५ साडाबारसें धनुष्यनुं देहमान, ६ पचास हजारपूर्व सुधी कुंवरपणे रह्या, ७ पचास हजार पूर्व सुधी मंडलिक पणे ह्या, ८ त्रीश हजार वर्ष लगें देश साधना करी, ९ सिंत्तेरलाख पूर्व लगें चक्रीपद, १० भद्रा स्त्री रत्न, ११ २ सगर चीनु राज्यकाल विचारणीय छे कारण ? अजीतनाथ प्रभुना तेओ काकाइ भाइ थाय छे अजीतनाथ प्रभु दिक्षा लीथा बाद तेभो राज्ये बेा छे अने प्रभु पासे दिक्षा लीधी छे माटे राज्यकाल बहु अल्प घटी शके. गृहवासमा ७१ लाख पूर्व रहेल छे एम समवायंगमां के पण कुंवरपणे बहुकाल जगाय हे माटे विद्वानोए विचारखुं. चतुर्दशद्वार वणेन ॥ १९९॥

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