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सिद्धांतरहस्य ॥२१८॥
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भव-संवेध विचार ॥२१८।।
छट्ठी नरकभूमिओमां पृथक् पृथक उत्कृष्ठ आठ भव पूरे छ-करे छे, ते आ प्रमाणे:-कोहक मनुष्य के तियच, कोइ पण नरक पृथ्वीमा उत्पन्न थइने त्यांथी मृत्यु पामी मनुष्य के तिर्यंचनी गतिमां जाय अने त्यांथी पुनः तेज | नरकपृथ्वीमा उपजीने फरीने मनुष्य के तिर्यंच गतिमां जाय; एवी रीते आठ भव करे. त्यारबाद नवमे भवे अव
इय अन्य पर्यायने पामे परंतु मनुष्य के तिर्यंच न थाय. आ प्रमाणे मर्वत्र भव-संवेध माटे जाणवू. एवीज रीते | मनुष्य के तियच, भवनपतिमां व्यंतरमा ज्योतिष्कमां अने सौधर्म बगेरे आठ देवलोकमां उ० थी आठ भव करे है|छे अने ज० थी नरक अने देव गतिमां पण बे भव करे छे. संज्ञीतिर्यंच (जलचरमच्छ पर्याप्त होय ते) जघन्य आयु
प्यथी सातमी नरकमां उत्पन्न थाय. ते उ. आयुष्यवालो के ज. आयुष्यवालो होय तो उ० थी सात भव करे ॐा छे. ते आ प्रमाणे:-कोटिपूर्वना आयुष्यवालो तियच, सातमी नरकमां ज. आयुष्ये उत्पन्न थइ त्यांथी तियच
थाय; पाछो सातमी नरकमां जाय एवीज रीते सात भव करे. पछी नरकमां ते जतो नथी अर्थात् अवश्य पर्याय (भव ) बदले. उ० आयुष्यवालो अथवा ज. आयुष्यवालो तिथंच, उ. आयुष्ये सातमी नरकमां उत्पन्न थाय | तो पांच भव करें. जघन्यथी तो चारे भांगामांत्रण भव करे छे. कारण ? सातमी नरकथी नीकलीने अवश्य संज्ञीतियच थाय. संज्ञीमनुष्य, चारे भांगा वडे सातमी नरकमां जाय तो बे भव करे. आनतादि चार देवलोक अने नव ग्रैवेयकमां चारे भांगे उत्पन्न थतो मनुष्य, उ० थी सात भव करे अने ज० थी त्रण भव करे, पछी
३ मनुष्य मरीने देव थाय, एटले एक भव मनुष्यनो अने बीजो देवनो पछी ते तियच थाय; वे भव विना संवेध कहेवाय नहिं.