Book Title: Siddhant Rahasya Part 01
Author(s): Devchandra Upadhyay
Publisher: Gangji Virji Shah

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Page 225
________________ सिद्धांत रहस्य ॥२१७॥ उ. भवनपतिमा एक सागर झाझेरी अने व्यंतरमा एक पल्यनी. ज्योतिष्कमा ज. पल्यनो आठमो भाग अने | उ. एक पल्यने एक लाख वर्षनी. पहेला देवलोकमां ज. एक पल्य अने उ० बेसागरनी. बीजा देवलोकमां ज. लेश्या पल्योपम झाझेरी अने उ० बेसागर ने पल्यना असंख्यातमा भागनी. पद्मलेश्यानी (बीजे चोथे अने पांचमे) विचार | देवलोके जस्थिति, तेजो लेश्यानी उ० स्थितिथी एक समय अधिक अने उ० दश सागरनी. शुक्ल लेश्यानी ॥२१७॥ (छट्टा देवलोकथी यावत् सर्वार्थसिद्धमा) ज. स्थिति दश सागर समयाधिक अने उ. ३३ सागरनी होय. तियच आश्रयी छए लेश्यानी स्थिति, अंतर्मुहर्तनीज होव अने मनुष्य आश्रयी शुक्ल लेश्या सिवाय पांच लेश्यानी स्थिति, अंतर्मु० नीज होय. मनुष्यमां छमस्थ आश्रयी शुक्ल लेश्यानी अंतर्मु नी अने केवली &| आश्रयी ज. अंतर्मु० अने उ० नव वर्ष न्यून क्रोड पूर्वनी होय. इति लेश्या स्वरुपं समाप्त. अथ भव-संवेध विचार-वर्तमान अने भाविभवनो तेमज आयुष्यनो जे सबंध ते भवसंवेध. पूर्वभव है। अने परभव सबंधी जे जघन्य ने उत्कृष्ट आयुष्यना भेदने लइने चार भांगा थाय छे ते कहे छे:-१ पूर्वभव अने परभवर्नु उत्कृष्ट आयुष्य होय ते प्रथम भंग. २ पूर्वभवन उ० आयुष्य अने परभवन ज. आयुष्य होय ते द्विती-18 यभंग. ३ पूर्वभवमा ज० आयुष्य अने परभवमां उ. आयुष्य होय ते तृतीय भंग. ४ पूर्वभव अने परभव (आगामिभव )मां पण ज. आयुष्य होय ते चतुर्थभंग. आ चारे भांगामां संज्ञीमनुष्य, अने तिर्यंच प्रथमथी ३ पन्नवणासूत्र-लेश्वापद, विशेष जिज्ञासुए जोवु, ४ भगवतीजीमा नव भांगा कहेल के, अहिं चार भांगामा संझेपथी समावेश करेल छे. %%AHARANAGAKARANG

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