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सिद्धांत
रहस्य ॥। १९५ ।।
पल्पनी, पांचमा आदेशथी ज० एक समयनी अने उ० पूर्वकोटी पृथकत्ववर्ष अधिक पृथक्त्व पल्योपमनी. पुरुष वेदनी स्थिति, ज० अंतर्मु० अने उ० सागरोपमशत पृथक्त्व अधिकनी. नपुंसकवेदनी ज० १ समयनी अने उ० वनस्पति-कालनी. अवेदीनी स्थिति बे प्रकारनी छे:- १ सादि-अनंत अने २ सादि-सांत. सादि सांत अवे दीनी स्थिति, ज० १ समय अने उ० अंतर्मुहूर्त्तनी. ७ सकषायी ऋण प्रकारना छे:- अनादि अनंत, २ अनादि सांत, ३ सादि-सांत. तेमां सादि-सांतनी स्थिति, ज० अंतर्मु० अने उ० अर्द्ध पुद्गलपरावर्त्तनी. क्रोध, मान अने मायाकषायी ए ऋणनी ज० अने उ० अंतर्मुहूर्त्तनी. लोभ कषायीनी ज० एक समयनी अने उ० अंतर्मुहूर्तनी. अकषायी बे प्रकारना छे:- १ सादि-अनंत अने २ सादि-सांत तेमां सादि-सांतनी स्थिति, ज० एक समय अने उ० अंतर्मु०नी. ८ सलेश्यी वे प्रकारना छे:- १ अनादि अनंत अने २ अनादि-सांत. कृष्ण लेइयीनी स्थिति,
२ कोइ स्त्री उपशमश्रेणि प्राप्त करी अवेदी थइने श्रेणिथी पडी एक समय स्त्री वेदने अनुभवी देव थाय माटे स्त्री वेदीनी एक समयनी स्थिति कही छे, नपुंसक वेदोनी पण जे एक समयनी स्थिति छे ते माटे पण स्त्री वेदीनी माफक समज. ज्यारे एक समय अवेदी थइ बीजे समये मरण पामे माटे त्यारे एक समयनी स्थिति होय. ३ लेश्यानी ज० स्थिति, मनुष्य अने तिथंच आश्रयी जाणवी. कारण ? तेना लेश्या द्रव्यो अवस्थित रहेता नथी अंतर्मुहूर्ते परावर्त्त पामे छे; तेनुं कारण मात्र कषाय छे. कषाय नाश थया बाद केवलीने अवस्थित रहे छे. अप्रशस्त लेश्यानी उ० स्थिति नारक आश्रयी अने प्रशस्त लेश्यानी स्थिति, देव आश्रयी समजवी, ते पण पूर्वभव अने परभवना ने अंतर्मु० अधिक होय के छतां बे अंतर्मु०नो एक अंतर्मु०मां समावेश करेल छे. देव अने नारकना लेश्याद्वन्यो, अवस्थित होय छे. बदलाता नथी. दर्पणमां प्रतिबिंब माफक आकार मात्रने भजे के.
* काय स्थिति विचार
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