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सिद्धांत
रहस्य ॥१८३॥
नियंठा विचार
॥१८॥
संयम-स्थानो छे. निग्रंथ अने स्नातकर्नु एक एक संयम-स्थानक छे. ते निग्रथने उपशमभावे अथवा क्षायकभावे होय अने स्नातकने तो क्षायकभावेज होय तेओर्नु अल्प बहुत्व-सर्वथी थोडा निग्रंथ अने स्नातकना संयम है स्थानक. तेथी पुलाकना असंख्यातगुणा सं० स्था० . तेथी बकुशना असंख्या० सं० स्था० छे तेथी प्रतिसेवना | कु. ना असं० सं० स्था० छे. तेथी कषाय कु. ना असं० सं० स्था० छे. पंदरमुं सन्निकर्षद्वार-(ते परस्पर संयो। जन-सबंध ). स्वस्थानमा अने परस्थानमा पर्यवोने आश्रयीने पुलाक, पुलाक साथे समान होय, अथवा छ स्थानपतित (छठाणवडियो) होय. बकुश अने प्रतिसेवनाथी अनंत गुणहीन होय. कषाय कु. साथे छ स्थानपतित | होय. निग्रंथ अने स्नातकथी अनंत गुणहीन होय. बकुश, पुलाकथी अनंत गुण अधिक होय अने १ बकुश २8
प्रतिसेवना अने ३ कषाय कु० साथे छ स्थान पतित अने उपरना बे निग्रंथोथी अनंतगुण हीन होय. प्रतिसेवना | कु०, पुलाकथी अनंतगुण अधिक होय. बकुश, प्रति से० ने कषाय कु. पत्रण साथे छ स्थान पतित अने उपरना बे निग्रंथोथी अनंत गुण हीन होय. कषाय कु० पेला चार निग्रंथो साथे छ स्थान पतित अने उपरना | बे निग्रंथोथी अनंत गुण हीन होय. निग्रंथ अने स्नातक, पहेला चार निग्रथोथी अनंत गुण अधिक अने | परस्पर तुल्य होय. तेओर्नु अल्प बहुत्व-पुलाक अने कषाय कु. ना जघन्य पर्यवो, सर्वथी थोडा होय.
'२ छ स्थान पतित ते 1 अनंत भाग हीन, २ असंख्यात भाग हीन, ३ संख्यात भाग हीन, ४ संख्यात गुण हीन, ५ असंख्यात गुण हीन | अने ६ अनंत गुण हीन, ए पटुगुण हानी. तेमज पटगुण वृद्धि ते , अनंत भाग वृद्धि, वगेरेजाणवी.