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सिद्धांत
रहस्य ॥ १८९॥
गृहस्थ-लिंगमां पण होय. भावलिंग आश्रयी स्वलिंगमांज होय. दशमुं शरीरद्वार-पुलाक, निर्बंध अने स्नातक ए ऋण निग्रथीने औदारिक, तैजम अने कार्मण ए त्रण शरीर होय. बकुश अने प्रतिसेवना कु· ने वैक्रेय सहित चार शरीर पण होय. कषायकुशीलने आहारक सहित पांच शरीर पण होय. इग्यारमुं क्षेत्रद्वार- पुलाक, जन्म अने सद्भाव आश्रयी कर्म भूमिमांज होय. शेष पांच निग्रंथी, जन्म अने सद्भाव आश्रयी कर्म भूमिमां होय पण संहरण आश्रयी अकर्म भूमिमांय होय. पुलाकनुं संहरण देवादिकधी पण धतुं नथी. बारमुं कालद्वारपुलाक, अवसर्पिणी कालमां जन्म आश्रयी श्रीजा-चोथा आरामां होय. सद्भाव आश्रयी श्रीजा, चोथा अने पचिमा आरामां पण होय. जे चोथा आरानो जन्मेलो होय तेज पांचमा आरामां होय. उत्सर्पिणी कालमां जन्म आश्रयी वीजा, त्रीजा अने चोथा आरामां होय. सद्भाव आश्रयी श्रीजा चोथा - आरामां होय. नो अबसर्पिणी नो उत्सर्पिणी कालमां (महा विदेहमां) जन्म अने सद्भाव आश्रयी पण होय. बकुश, प्रतिसेवना अने कषाय कुशील ए त्रग, अवसर्पिणीमां जन्म अने सद्भाव आश्रयी श्रीजा - चोथा - पांचमा आरामां होय.
२ पुलाफ सिवाना निग्रंथो, भरतादिवत् गृहस्थादिलिंगमां संभवे. परंतु नवपूर्वधारी जे पुलाक, ते कारणवशात् अन्यलिंग के गृहस्थलिंगमां होय छे. ३ पुलाकने वैक्रेपछि वैक्रेय शरीर केम नहोय ? उत्तर- पुलाक, संघादिना कार्य प्रसंगे लब्धि प्रयुंजतां पुलाक भावने छोडीने अबइय कषाय कुशील भावने पामे छे कारण ? परिणामनी वृद्धि धवाधी. माटे वैक्रेय शरीर न होय. लब्धिनुं सामर्थ्य छतां जो संघादि कार्य माटे लब्धि न प्रयुजे तो संतो द्रोही थवाथी विराधक थाय. [पंच निद्र्धनी टीका ]
नियंठा विचार
॥ १८९॥