________________
सिद्धांत
रहस्य ॥ १७९ ॥
भेदधी ( शक्र - पुरंदरादिक शब्दनीं जेम शब्दनयनी व्याख्याथी) छे. बीजुं वेदद्वार - पुलाक ते पुरुषवेदी अने पुरुष नपुंसकवेदी होय, स्त्रीवेदी न होय. बकुश ने प्रतिसेवना कु०, त्रणे वेदवाला होय. कषाय कुशील, त्रणे वेदवाला होय अथवा अंवेदी पण होय तो उपशांतवेदी के क्षीणवेदी होय अने स्नातक, क्षीणवेदी होय, त्रीजुं रागद्वार - पहेला ४ निर्गंधो, सरागी होय. निर्गंध उपशांतरागी के क्षीणरागी होय. स्नातक क्षीणरागी होय. चोथुं कल्पद्वार तेना ५ भेद-१ स्थितकल्प, २ अस्थितकल्प, ३ जिनकल्प, ४ स्थविरकल्प अने ५ कल्पातीत. छए निर्गथो, स्थितकल्प अने अस्थितकल्पमां होय. पुलाक, स्थविरकल्पमांज होय. बकुश अने प्रतिसेवना कु०, जिनकल्प अने स्थविरकल्पमां होय कषायकु०, जिनकल्प - स्थविरकल्प अने कल्पातीतमां होय. निर्बंध अने स्नातक, कल्पातीत कल्पमांज होय. पांचमुं चारित्रद्वार- पुलाक, बकुश अने प्रतिसेवनाकु० ए त्रण, प्रथमना बे चारित्रवाला होय. कषायकु०, यथाख्यात चा० सिवाय पहेला चार चारित्रवाला होय. निर्बंध अने स्नातक, एक
छूटवाना समये शरीर छोडयु कहेवाय. क्रीयमाणं कृतं नी जेम आ व्याख्या ऋजुसूत्रने मते छे तेमज शास्त्रमां पण कहेलु छे के "अलोग पहिया सिद्धा, लोगंतेय पइडिया; इअं बोंदिचइताणं, तत्थ गंतुण सिज्झइ. " माटे अशरीरी ते सिद्ध नहि.
१ जन्मतः नपुंसक न होय पण कृत नपुंसक अर्थात् पछीथी नपुंसक वेदना उदयवालो जाणवो जन्म नपुंसकने २ नवमा गुणठाणाना संख्यात भाग गया बाद अवेदी थाय छे अने कपाय कुशीलपणुं दशमा गु० सुधी छे. माटे कषाय ३ कषाय कुशीलमां कल्पातीत होवानुं कारण के छद्मस्थ तीर्थंकरो कल्पातीत होय छे.
संयमनी प्राप्ति न होय. कु०, वेद रहित पण होय.
नियंठा
विचार
॥ १७९॥